वानस्पतिक नाम : सोलनम मेलोंजेना
कुल : सोलेनेसी
गुणसूत्र संख्या .: 2n = 24
जन्म स्थल : भारत
दूसरे नाम : एगप्लांट (Eggplant), आउबर्जिन (Aubergine)
महत्वपूर्ण बिन्दु
- बैंगन में नर बंध्यता पाई जाती है ।
- बैंगन में एंथोसायनिन वर्णक पाया जाता है।
- बैंगन दिवस निष्प्रभावी पौधा है।
- बैंगन में सोलासोडिन (Solasodine) नामक विषैला (toxic) पदार्थ उपस्थित रहता है ।
- चीन के बाद भारत बैंगन उत्पादन में दूसरे नंबर पर है।
- भारत में बैंगन उत्पादन में वेस्ट बंगाल पहले नंबर पर है इसके बाद ओडिसा और फिर बिहार का नंबर है.
- Diabetis के मरीजों के लिए सफेद बैंगन लाभदायक होता है।
- बैंगन की संकर किस्में 14% क्षेत्र में उगाई जाती है ।
- सामान्यतः बैंगन में Heterostyly पुष्प पाए जाते है ।
- अधिकतर फल Long styled flowers पर बनते है।
- Pseudo– short और short styled flowers में फल नहीं लगते।
- बैंगनी रंग की किस्मों में सफेद किस्मों की तुलना में अधिक विटामिन C होता है।
क्षेत्र और उत्पादन
बैंगन उत्पादन पूरे भारत में किया जाता है जो की कुल सब्जी उत्पादन का 8.14% है तथा उत्पादन 9% है इस की खेती बिहार उत्तर प्रदेश, वेस्ट बंगाल, आंध्र प्रदेश कर्नाटक आदि राज्यों में की जाती है ।
Table: देश में बेंगन का क्षेत्र, उत्पादन, और उत्पादकता
Year | Area (000’ha) | Production (000’MT) | Productivity (MT/ha) |
2015-16 | 663 | 12515 | 18.9 |
2016-17 | 733 | 12510 | 17.1 |
2017-18 | 730 | 12801 | 17.5 |
Source: NHB Database 2018
आर्थिक महत्व और उपयोग
- बैंगन साल भर मार्केट में उपलब्ध रहता है यह कैल्सीयम, फॉसफोर्स, लौह तत्व और विटामिन B से भरपूर होता है फल में 91.5g पानी, 6.4 g कार्बोहाइड्रट 1.3 g प्रोटीन, 0.3 g वसा, और 0.5 g दूसरे खनिज पदार्थ प्रति 100 g होते है। बैंगन के हरे पत्ते में विटामिन C (38-104.7mg/100g) पाया जाता है ।
- गहरे बैंगनी फलों में सफेद किस्मों की तुलना से विटामिन C अधिक पाया जाता है । बैंगन में कड़वापन (bitterness) glycoalkaloids के कारण होती है । सामान्यतः glycoalkaloid की अधिक मात्रा (20mg/100g) से बैंगन का स्वाद कड़वा होता है।
- बैंगन को कोलेस्ट्रॉल को कम करने के लिए भी उपयोग किया जाता है
- बैंगन अचार बनाने और निर्जलीकरण उद्योगों में कच्चे माल के रूप में अधिक उपयोगी हैं। इसे कुछ औषधीय गुणों से युक्त माना जाता है और सफेद बैंगन को मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा माना जाता है। फलों को दांत दर्द के इलाज के रूप में उपयोग किया जाता है। जो लीवर की शिकायत से पीड़ित हैं उसके इलाज के लिए भी बैंगन महत्वपूर्ण है ।
किस्में
बैंगन की किस्मों को रंग और आकार के अनुसार बहुत से प्रकारों में बांटा जा सकता है जबकि बैंगन की किस्मों के दो मुख्य प्रकार निम्न है :
1. लंबी किस्में (Long varieties)
पूसा पर्पल लॉन्ग, पूसा पर्पल क्लस्टर, पूसा क्रांति, कृष्णानगर ग्रीन लॉन्ग, अर्का शील, अर्का कुसुमाकर, अर्का आनंद, अर्का केशव (बीडब्ल्यूआर-21), अर्का नवनीत, अर्का नीलकंठ (बीडब्ल्यूआर-54) अर्का निधि (बीडब्ल्यूआर-12), अर्का शिरीष (आईआईएचआर 194-1), एच-4, पंजाब बरसाती, पंत स्मार्ट, आज़ाद क्रांति
2. गोल किस्में (Round varieties)
पंत ऋतुराज, पूसा पर्पल राउंड, मंजरी, कृष्णानगर पर्पल राउंड, पंजाब बहार
चुनाव (Selection)
पूसा पर्पल लॉन्ग | पूसा पर्पल क्लस्टर | पंत स्मार्ट |
पूसा पर्पल राउंड | अर्का शिरीष (हरी) | अर्का कुसुमाकर |
अर्का शील | पंजाब चमकीला | पंजाब नीलम |
पंजाब बहार | आजाद क्रांति | अर्का निधि |
संकर किस्में
पूसा अनमोल: आईएआरआई में पूसा पर्पल लॉन्ग X हैदरपुर
आज़ाद हाइब्रिड: आज़ाद बी1 X कल्याणपुर-3,
पंत ऋतुराज: टी-3 X पीपीसी,
पूसा अनुपम: पूसा क्रांति X पीपीसी,
पंजाब बरसाती: पीपीसी X एच-4,
पूसा उत्तम: जीआर X ऋतुराज
पूसा बिंदु: जीआर X ऋतुराज
अर्का नवनीत: IIHR221 X सुप्रीम
पूसा क्रांति: (पूसा पर्पल लॉन्ग X हैदरपुर) X डब्ल्यूजी (वायनाड गैंट)
पूसा भैरव: PPL X 11a-12-2-1 फ़ोमोप्सीस झुलसा से प्रतिरोधी किस्म
पूसा उपकार, पूसा हाइब्रिड-5, पूसा हाइब्रिड-6, विजय हाइब्रिड, हिसार श्यामल (एच-8), पूसा जमुनी, वरदान, निशा, शिवा, सुफल, वैशाली
पंत सम्राट: फ़ोमोप्सीस झुलसा और बैक्टिरीयल विल्ट से प्रतिरोधी किस्म ।
फ्लोरिडा मार्केट: फ़ोमोप्सीस झुलसा से प्रतिरोधी किस्म
अन्नामलाई: Aphid से प्रतिरोधी किस्म
पूसा अंकुर: नई किस्म
जलवायु
बैंगन पाले को सहन नहीं कर सकता है पौधे के विकास के लिए लंबी और गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है बैंगन की सफल खेती के लिए 21-270 C तापमान उपयुक्त रहता है ठंडे मौसम में कम तापमान के कारण अंडाशय का विकास सामान्य नहीं होता अथवा वह फटने (Splitting) लगता है जिस से उस मौसम में विकृत फल बनने लगते है पछेती किस्में हल्की ठंड को सहन कर सकती है। जबकि दूसरी किस्मों की ठंडे मौसम में पौधे का विकास, फल का आकार, गुणवता और उपज प्रभावित होती है।
मृदा (Soil)
बैंगन को हल्की से लेकर भारी मिट्टी में उत्पादन के लिए उगाया जा सकता है चिकनी दोमट (clay loam) इस की खेती के लिए उत्तम रहती है मिट्टी अच्छे जल निकास वाली, गहरी और उपजाऊ होनी चाहिए। मिट्टी का pH 5.5 से 6.0 होना चाहिए।
उगाने का समय (Growing time)
उत्तरी भारत में बैंगन को दो मौसम में उगाया जाता है :
- पतझड़-सर्दी की फसल के लिए जून – जुलाई में
- बसन्त गर्मी की फसल के लिए नवंबर में बुआई की जाती है
देश के दूसरे भागों में इसे जून से सितंबर और फिर दिसंबर- जनवरी में बोया जाता है ।
पहाड़ी क्षेत्रों में बीज मार्च-अप्रैल में बोए जाते है और रोपण में में करते है।
बीज दर और बीजोउपचार
एक हेक्टर के लिए लगभग 250-375 g बीज पर्याप्त रहते है जिस से लगभग 40000-45000 पौधे तैयार हो जाते है बीमारियों से बचाव के लिए बीजों को बुआई से पूर्व 2g/kg की दर से थायरम अथवा captan से उपचारित करना चाहिए
नर्सरी
बैंगन की पौध के लिए उठी हुई क्यारियां 7.5m x 1.2 m x 10-15 cm सकार की बनाई जाती है जिनमें बीजों को लाइनों में 7.5 से 10 cm की दूरी पर बोया जाता है क्यारी की ऊपरी सतह पर 1 cm मोटी कोंपोस्ट (compost) अथवा गोबर की खाद की परत लगा कर उसे ऊपरी मिट्टी में भली भांति मिला दिया जाता है। और बीजों को बोने के बाद इस क्यारी को सुखी हुई घास अथवा पत्तियों से ढक दिया जाता है । फिर हज़ारे से पानी का छिड़काव कर दिया जाता है पौध 4 से 5 सप्ताह में मुख्य खेत में ट्रांसप्लांट करने के लिए तैयार हो जाती है।
खेत की तैयारी
खेत की 4-5 जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लिया जाता है और खेत की अंतिम जुताई के समय 25 टन प्रति हेक्टर की डॉ से गोबर की खाद मिला दी जाती है।
रोपाई
पौधों की दूरी (spacing) मिट्टी के प्रकार, मौसम, तथा किस्म के ऊपर निर्भर करती है सामान्यतः बैंगन के लिए 60 X 45, 75 X 60 अथवा 75 X 75 cm दूरी की अनुशंसा की जाती है अधिक फैलाव और पछेती किस्मों को अधिक दूरी पर उगाया जाता है जबकि अगेती और कम फैलने वाली किस्मों को कम दूरी पर उगाया जाता है रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए।
खाद और उर्वरक
बैंगन की अच्छी उपज और वृद्धि के लिए अधिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है खेत की तैयारी के समय 25 टन / हेक्टर गोबर की खाद डालनी चाहिए । नीचे दी हुई उर्वरकों की मात्रा में से 25% नाइट्रोजन और फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की अंतिम जुताई के समय डाल दी जाती है । और शेष नाइट्रोजन को दो भागो में बाँट कर पहली 35-40 दिन बाद और दूसरी 60-70 दिन बाद सिंचाई के साथ छिड़क कर दी जाती है
Table 1. Recommendations of NPK levels in some states of India
State | NPK (kg) |
Andra pradesh | 100-60-60 |
Madhya pradesh | 100-60-25 |
Orissa | 125-80-110 |
Punjab | 125-62-30 |
Karnataka | 125-10-50 |
Tamil Nadu | 100-50-30 |
Uttar Pradesh | 100-50-50 |
West Bengal | 120-50-50 |
सूक्ष्म तत्व (Micronutrients)
बैंगन में अधिक उपज लेने के लिए और अधिक बड़े फल प्राप्त करने के लिए Zn का उपयोग किया जा सकता है और Cu पुष्पों की संख्या को बढ़ाता है ।
सिंचाई (Irrigation)
इसे अधिक सिंचाइयों की आवश्यकता होती है फलों के लगने में और उनके विकास में इसकी बहुत आवश्यकता होती है मैदानी क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में प्रत्येक 3 से 4 दिन और सर्दियों में 10 से 14 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। ड्रिप सिंचाई विधि अधिक लाभदायक रहती है इस से खरपतवार की समस्या नहीं रहती है और उत्पादन भी अधिक मिलता है ।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार को समय समय पर निकालते रहना चाहिए । खेत में हल्की निराई गुड़ाई करने से खरपतवार नहीं उगते तथा मिट्टी भुरभुरी बनी रहती है Orabanche बैंगन का और दूसरी सोलेनेसी कुल की फसलों का प्रमुख खरपतवार है यह root parasite किस्म का होता है इसके नियंत्रण के लिए रोपण पूर्व fluchloralin 1.0 kg / हेक्टर डालने की अनुशंसा की जाती है साथ ही रोपण के 30 दिन बाद एक हाथ से निराई गुड़ाई करनी चाहिए।
पलवार
मल्चीग एक तरफ तो खरपतवार का नियंत्रण करती है और दूसरी तरफ मिट्टी की नमी को भी सुरक्षित रखती है वर्तमान में काली पॉलिथीन की mulching की जाती है जो की काफी लाभदायक होती है जो की खरपतवार का नियंत्रण तो करती ही है साथ ही पौधे के विकास में तथा उत्पादन को भी बढ़ा देती है
वृद्धि हार्मोन और रसायनों का उपयोग
- 2, 4 -D का 2 ppm का पुष्पन ले समय छिड़काव करने से parthenocarpy फल बनते है, फलन बढ़ जाता है फल जल्दी पकते है और उपज में वृद्धि होती है ।
- 4 PCPA (Para-chlorophenoxy acetic acid) का (20ppm) छिड़काव फलन को बढ़ा देता है।
- NAA (60ppm) का एकल और BA (30ppm) के साथ मिक्स कर छिड़काव करने से पुष्पन में तथा फलन में वृद्धि होती है
- Ascorbic acid, GA3, IAA और thiourea का छिड़काव करने से पुष्पन 4–5 दिन पूर्व होता है ।
भौतिक विकार (Physiological Disorder)
- Calyx withering
यह विकार मध्य फरवरी से अप्रैल में देखने को मिलता है इसमें पौधे के फलों का रंग लाल से हल्का भूरा हो जाता है और फल अपनी चमक खो देते है जिससे फलों का मार्केट में मूल्य नहीं मिलता है प्रभावित फलों में कैल्सीअम (Calcium) और नाइट्रोजन अधिक हो जाने से यह विकार होता है
- Poor fruit set
सामान्यतः बैंगन में चार प्रकार के पुष्प लगते है long styled, medium styled, pseudo short styled और short styled पुष्प। इनमें से pseudo short styled और short styled पुष्पों में फलन नहीं होता। केवल long styled और medium styled में ही फलन होता है । बैंगन में पुष्प सामान्यतः एकल (solitary) अथवा गुच्छे (cluster) में लगते है जब पुष्प एकल लगते है तब इनमें से अधिकतर पुष्प long styled अथवा medium styled ही होते है परन्तु जब ये गुच्छे में लगते है तब medium styled pseudo short styled अथवा short styled ही होते है और pseudo short, short styled पुष्प medium styled पुष्पों की तुलना में अधिक बनते है और इनका अनुपात 3-4:1 होता है ।
प्रबंधन:
इस विकार को PGR का छिड़काव कर कम किया जा सकता है क्योंकि pseudo short styled में फलन की संभावना होती है। जबकि short styled पुष्प पूरी तरह से बंध्य (sterile) होते है
- पौधों पर पुष्पन के समय 2 ppm 2,4–D का छिड़काव करने से फलन में वृद्धि होती है
- 60 ppm NAA का अथवा 500 ppm PCPA (Parachloroacetic acid) का छिड़काव भी फलन को बढ़ा देता है ।
तुड़ाई और उपज (Harvesting and yield)
बैंगन की तुड़ाई उचित अवस्था पर कर लेनी चाहिए जब वह पूरा आकार और रंग ले लेता है कच्चा और कोमल होता है तो उस की तुड़ाई कर लें। फलों को डंडी के साथ तोड़ा जाता है बैंगन की तुड़ाई 7 से 10 दिनों के अंतराल पर की जाती है ।
बैंगन की उपज किस्म जलवायु और अवधि पर निर्भर करती है सामान्यतः अगेती किस्मों से 20 -30 टन / हेक्टर और लंबी अवधि की किस्मों से 20-30 टन / हेक्टर तक उत्पादन मिल जाता है
भंडारण (Storage)
बैंगन को 8-100 C तापमान पर 4 सप्ताह तक भंडारित कर के रखा जा सकता है इसके लिए CO2 की सांद्रता 5% तक और अद्रता 85-95% रखी जाती है ।
रोग प्रबंधन
1. फ़ोमोप्सिस ब्लाइट (फ़ोमोप्सिस वेक्सन्स):
यह बैंगन की मुख्य बीमारी है इसमे पौधे के सभी भागों पर भूरे, गोल और अंडाकार धब्बे बन जाते है जो समय के साथ बढ़ने लगते है और पूरे पौधे को कवर कर लेते है इस से फलन बंद हो जाता है
नियंत्रण
- रोगरोधी किस्में उगानी चाहिए।
- लंबा फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- बीज बोने से पूर्व बीजों को 500 C तापमान के पानी से 25 मिनट तक बीजोउपचार कर बुआई करनी चाहिए।
- नर्सरी और खेत में fungicide का छिड़काव करना चाहिए।
2. बैक्टीरियल विल्ट (स्यूडोमोनास सोलानेसीरम)
पौधा की पत्तिया पीली हो कर पौधा मुरझाने लग जाता है उसकी वृद्धि रुक जाती है
नियंत्रण
- रोगरोधी किस्में उगानी चाहिए जैसे पूसा पर्पल लॉन्ग आदि
- लंबा फसल चक्र अपनाना चाहिए।
3. अद्र विगलन (फाइटोफ्थोरा स्पीशीज़ या पाइथियम स्पीशीज़): समान्यत नर्सरी के अंदर पौध अधिक प्रभावित होती है पौध का तना collor क्षेत्र से गल जाता है और पौधा क्यारी मे गिर जाता है। और मर जाता है ।
नियंत्रण
- नर्सरी की क्यारी की मिट्टी को फॉर्मेलिन या किसी कापर कवक नाशी से निरजमीकर्ण (Sterilization) करने के उपरांत बीज बोने चाहिय।
- बीज बोने से पूर्व बीजों का बीजोउपचार सेरेसन अथवा अगरोसन से करना चाहिए।
4. छोटी पत्ती (माइकोप्लाज्मा): इस बीमारी में पौधे की पत्तियां छोटी रह जाती है और पुष्प भी विकृत (deformed) बनते है लीफ हॉपर (leaf hopper) इस बीमारी का वाहक होता है
नियंत्रण
- पौधे के प्रभावित भागों को काट कर नष्ट कर देना चाहिए।
- कीटनाशक जैसे folidon अथवा rogor का छिड़काव leaf hopper के नियंत्रण के लिए करना चाहिए।
कीट नाशीजीव प्रबंधन
- टहनी और फल छेदक (ल्यूसीनोड्स ऑर्बनालिस):
हल्की गुलाबी रंग की लार्वा पौधे की प्रारभिक अवस्था में तने के प्रोह में छेद कर अदंर से इसे कहा जाती है और फल तक पहुँच कर इस में छेद कर घुस जाती है जिस भी शाखा को नुकसान पहुँचती है वो सुख जाती है । फल भी खाने योग्य नहीं रहते It is,
नियंत्रण
- प्रभावित शाखा को कीट के साथ ही काट कर नष्ट कर देना चाहिए।
- लिन्डन (lindane) 11 ml का 9 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए।
- 2 सप्ताह के अंतराल पर कारबेरील (Carberyl) 0.2% का छिड़काव करना चाहिए।
- लीफ रोलर: वयस्क और लार्वा पत्तियों को कहा कर नुकसान पहुंचता है पत्तिया इस कीट के प्रभाव से रोल होना शुरू हो जाती है साथ ही सुख जाती है।
नियंत्रण
- प्रभावित पत्तियों को इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए
- एन्डोसल्फान अथवा रोगोर का छिड़काव करना चाहिए।