Basic Horticulture

कलिकायन (Budding)

कलिकायन:- वह विधि जिसमें कली (Bud) /scion को मूलवृन्त (Rootstock) पर इस प्रकार लगाना जिससे की दोनों जुड़ जाए तथा एक नए पौधे का निर्माण करें कलिकायन (budding) कहलाता है।

पौधों के वानस्पतिक भाग जैसे – फूल, फल का निर्माण कली (bud) / Scion से होता है तथा पौधे का वह भाग जिस पर कली को रोपित किया जाता है और जो जड़ तंत्र का निर्माण करता है वह मूलवृन्त (Rootstock) कहलाता है।

समान्यत कलिकायन बसंत (मार्च – अप्रैल), गर्मियों (मई – जून) तथा वर्षा ऋतु (जुलाई -सितंबर) में करनी चाहिए। इस समय पौधों में रस (sap) का प्रवाह अधिक होता है अर्थात रस अधिक होता है। और इस समय कैम्बीअम (cambium cell) में लगातार विभाजन हो रहे होते है जिस से कली मूलवृन्त से जल्दी चिपक जाती है।

समान्यत कलिकायन के लिए मूलवृन्त पेंसिल की मोटाई का और 1-2 वर्ष पुराना चुना जाता है।

कलिकायन के प्रकार (Types of Budding)

  1. टी – कलिकायन (T-Budding) – कलिकायन के लिए एक वर्ष पुराने मूलवृन्त जो पेंसिल की मोटाई का हो चुनाव किया जाता है। मूलवृन्त पर दो node के मध्य और लगभग 10-25 सेमी की ऊंचाई पर टी (T) के आकार का चिरा लगाया जाता है इसलिए इसे टी कलिकायन की संज्ञा दी जाती है। अगर यह चीरा उलटे टी के आकार का लगाया जाए तो इसे इनवर्टेड टी (inverted T) कलिकायन कहा जाता है। चीरा लगाने के उपरांत चीरे की छाल को कलिकायन चाकू के पिछले सिरे जिसे ब्लेडर (blader) कहा जाता है से ढीला कर लेते है। अब एक उन्नत किस्म के वृक्ष की पेंसिल की मोटाई की शाखा से नाव अथवा ढाल (Shield) आकार की 2.50 – 3.50 सेमी लम्बी कली को चाकू की सहायता से निकाल लिया जाता है कली के पीछे से सावधानीपूर्वक लकड़ी के टुकड़े को हटा दिया जाता है। और कली को टी आकार के चीरे में फंसा कर चीरे को 300 गेज की पॉलिथीन की पट्टी से बांध दिया जाता है बांधते समय कली के वृद्धि वाले भाग को खुला रहने दिया जाता है। पतली छाल वाले पौधों में यह विधि उत्तम रहती है उदाहरण – गुलाब, नाशपाती, सेब, आड़ू अखरोट, अंगूर आदि।
  2. पैच कलिकायन (Patch Budding) – कलिकायन की यह विधि मोटी छाल वाले फल वृक्षों में अधिक उपयोगी है कलिकायन के लिए सांकुर शाखा (Scion) से वर्ग या आयत के आकार की कली (bud) को निकाला जाता है तथा कली की लंबाई और चौड़ाई के समान चीरा मूलवृन्त पर लगा छाल को हटा दिया जाता है। कली को इस कट में चिपका कर पॉलिथीन की पट्टी से बांध देते है कली के वृद्धि वाले भाग को खुला रखा जाता है। उदाहरण – कटहल, आंवला, आम,जामुन, आदि।
  3. चिप कलिकायन (Chip Budding) – समान्यत ऐसे पौधों में जिनमें रस (sap) का प्रवाह बहुत कम होता है तथा छाल को लकड़ी से आसानी से अलग नहीं किया जा सकता है यह कलिकायन विधि उपयोग में ली जाती है। इस विधि में संकुर शाखा (Scion) से आयताकार लकड़ी सहित कली को निकाला जाता है और मूलवृन्त पर भी ऐसा ही चीरा लगा कर छाल को हटा दिया जाता है। अब कली को इस कट में फंसा कर पॉलिथीन की पट्टी से बांध दिया जाता है। अंगूर मे Phylloxera insect से बचाव के लिए इस विधि का उपयोग पौधे की सुसुप्त अवस्था में किया जाता है यह विधि सेब, नाशपती, और अंगूर में फरवरी -मार्च में कलिकायन के लिए उपयुक्त है।
  4. रिंग कलिकायन (Ring Budding) – बेर, आड़ू, तथा शहतूत के लिए उत्तम विधि है इस विधि में छल्ले के आकार की कली सांकुर शाखा से सावधानीपूर्वक निकली जाती है। जिसकी लंबाई 2.5-3.0 सेमी हो। मूलवृंत के ऊपरी भाग पर भी इसी लंबाई का कट लगाकर छल्लेनुमा छाल को हटा दिया जाता है अब मूलवृंत पर छल्लेनुमा कली को धीरे- धीरे नीचे खिसकाते हुए फिट किया जाता है। ध्यान रहे कली को लगाते समय इसमे हवा या खाली जगह नहीं रहनी चाहिए, कली एकदम मूलवृंत पर चिपक जानी चाहिए। इस विधि में कली को पॉलिथीन की पट्टी से बांधने की आवश्यकता नहीं होती है।
  5. रूपांतरित रिंग कलिकायन (Modified Ring Budding) – यह विधि रिंग कलिकायन की तरह ही होती है परंतु इस विधि में सुविधा के लिए कली को सांकुर शाखा से एक लम्बवत कट/ चिरा लगाकर उतारा जाता है। ऐसी काली को मूलवृंत को ऊपर से बिना काटे, मध्य में लगाया जा सकता है। कली को मूलवृंत पर लगाने के उपरांत इसे पॉलिथीन से बांध दिया जाता है। बरसात के दिनों में कली को सड़ने से बचाने के लिए कली और मूलवृंत के मध्य खुली जगह पर पैराफिन मोम लगा दी जाती है।
  6. फ़ोरकर्ट कलिकायन (Forkert Budding) – इस विधि में आयताकार कली 2-3 सेमी लंबी तथा 0.5 -1.0 सेमी चौड़ी सांकुर शाखा से निकली जाती है। इसी आकार का चीरा मूलवृंत पर भी लगाया जाता है। लेकिन कट तीन तरफ से ही लगाया जाता है। और छाल को नीचे की तरफ से मूलवृंत से ही जुड़ा रहने देते है। मूलवृंत के कट में कली को चिपकाने के उपरांत नीचे से जुड़ी हुई छाल से कली को ढक दिया जाता है और पॉलिथीन की पट्टी से बांध देते है कुछ दिनों के बाद जब कली मूलवृंत पर चिपक जाती है तब 2 से 3 बार में धीरे -धीरे ऊपर की छाल को कली के ऊपर से काट कर हटा देते है। यह विधि शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में कली को सूखने से बचाने के लिए उपयोग की जाती है।
  7. रूपांतरित फ़ोरकर्ट कलिकायन (Modified Forkert Budding) – यह विधि भी फ़ोरकर्ट कलिकायन की तरह ही है यह माना जाता है की ये विधि इसी का सुधरा हुआ रूप है इसमें मूलवृंत की छाल को आधा काट कर पहले ही हटा दिया जाता है और शेष छाल से कली के निचले हिस्से को ढक कर पॉलिथीन की पट्टी से बांध दिया जाता है। इस विधि में छाल को बाद में हटाने की आवश्यकता नहीं होती है। बांधते समय कली के वृद्धि वाले भाग को खुला रखा जाता है।  

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