Vegetable Science

पत्ता गोभी की खेती

कैबेज (ब्रैसिका ओलेरेसिया var. कैपिटाटा) को भारत में ‘पत्ता गोभी’ के रूप में भी जाना जाता है। यह ब्रिसिकैसी कुल की महत्वपूर्ण फसल है जिसे उचित वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। भारत (9.2MT), चीन (34MT) के बाद दुनिया में गोभी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। गोभी विटामिन C का एक समृद्ध स्रोत है जो स्कर्वी रोग से बचने के लिए आवश्यक है। यह पाचन में भी मदद करता है। इस अध्याय में, आप इसकी खेती को विस्तार से पढ़ेंगे।

अन्य नाम:- कैबिज (Cabbage), बंद गोभी, बांदा कपि, करम काल

वानस्पतिक नाम:- Brassica oleracea var capitata

कुल :- Crucifereae / Brassicaceae

गुणसूत्र संख्या :- 2n=18

उत्पति :- भूमध्यसागर क्षेत्र

खाने वाला भाग:- हेड (Enlarged and exaggerated terminal bud)

फल प्रकार:- सिलिकुआ (एक bicarpillary फली)

महत्वपूर्ण बिंदु

  • कोल क्रॉप्स (Cole Crops): -कॉल शब्द “Caulis” से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘तना’ (stem)। कोल का अर्थ है एक ही जंगली गोभी (ब्रैसिका ओलेरेसिया  var. सिल्वेस्ट्रिस) से उत्पन्न होने वाले अत्यधिक विभेदित पौधों का एक समूह।
  • विश्व में गोभी उत्पादन में भारत का स्थान दूसरा है।
  • भारत में सब्जियों के अंतर्गत कुल खेती वाले क्षेत्र में पत्ता गोभी का 4% योगदान है।
  • कच्ची गोभी में एरोमा मौजूद एलिल आइसोथियोसाइनेट (Allyll isothiocyanate) के और पकी हुई (cooked) गोभी में डाइमिथाइल डाइसल्फ़ाइड (Dimethyl disulphide) कारण होती है।
  • 30% क्षेत्र में पत्ता गोभी की संकर किस्मों की खेती होती है, जो अन्य किस्मों की तुलना में अधिक है।
  • पत्तागोभी एक दीर्घ दीप्ति कालिक (long day) पौधा है।
  • पत्ता गोभी पर-परागण वाली फसल है।
  • गोल किस्में शंक्वाकार किस्मों की तुलना में पहले परिपक्व होती हैं।
  • पत्ता गोभी में Sporophytic self-incompatibility पाई जाती है।
  • पत्ता गोभी की श्वसन दर कम होती है।
  • पत्ता गोभी में मौजूद एक विषैला यौगिक सिनिग्रिन (sinigrin) है।
  • सेवॉय पत्ता गोभी- ब्रैसिका ओलेरेसिया var. साबूदा
  • जंगली पत्ता गोभी – ब्रैसिका ओलेरेसिया  var. सिल्वेस्ट्रिस
  • हाइब्रिड किस्मों को साइटोप्लाज्मिक जेनेटिक नर बाँझपन (cytoplasmic genetic male sterility) का उपयोग करके विकसित किया जाता है जो गोभी में मौजूद होता है।
  • लवणीय मृदाओं में खेती करने पर ब्लैक लेग (Black leg) रोग अधिक होता है।
  • शीतोष्ण जलवायु (Temperate) पत्ता गोभी के बीज उत्पादन के लिए उपयुक्त होती है।

क्षेत्रफल और उत्पादन

Sr. No.

राज्य

2018

क्षेत्रफल (000 ha)

उत्पादन (000MT)

1

वेस्ट बंगाल

79.46

2288.50

2

बिहार 

37.94

673.44

3

उड़ीसा 

37.74

1058.78

4

असाम

33.24

640.13

5

मध्य प्रदेश

29.89

686.91

6

गुजरात

27.85

629.48

 

अन्य 

152.39

3060.10

 

कुल

398.51

9037.34

Source NHB 2018

आर्थिक महत्व

  • इंडोल-3-कारबिनोल (Indole-3-carbinol) एक एंटीकैंसर यौगिक मौजूद होता है।
  • Sauerkraut: – सफेद गोभी से तैयार एक प्रसंस्कृत उत्पाद है और स्कर्वी रोग में उपयोगी है। “सॉरेक्राट” एक जर्मन शब्द है जिसका अर्थ है ‘पत्ता गोभी की किण्वन’। किण्वन में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं वे पत्तियों की चीनी को किण्वित करते हैं और एक विशिष्ट खट्टे स्वाद उत्पाद को लंबे शेल्फ जीवन के साथ बनाते है
  • पत्ता गोभी में 9 ग्राम नमी, 1.8 ग्राम प्रोटीन, 4.6 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.06 मिलीग्राम थियामिन, 0.03 मिलीग्राम राइबोफ्लेविन, 2000 IU विटामिन A और 124 मिलीग्राम विटामिन C प्रति 100 ग्राम खाद्य भाग होता है।
  • पत्ता गोभी का ठंडा प्रभाव होता है और कब्ज की रोकथाम में मदद करता है।
  • यह पाचन को बढ़ाता है, भूख बढ़ाता है और मधुमेह के रोगियों के लिए उपयोगी है

किस्में

1. पुरस्थापित 

  • गोल्डन ऐकर
  • रेड ऐकर
  • सितंबर: – जर्मनी से, नीलगिरि पहाड़ियों में खेती की जाती है।
  • ग्लोरी ऑफ एन्खूइज़न (Glory of Enkhuizen)
  • कोपेनहेगन मार्केट: – अगेती किस्म
  • अगस्त: – अगेती किस्म
  • रेड कैबेज

2. चुनाव 

  • प्राइड ऑफ इंडिया:- गोल और अगेती किस्म
  • पूसा अगेती: – अगेती किस्म, उच्च तापमान स्थितियों के लिए उपयुक्त पहली उष्णकटिबंधीय किस्म

3. संकर 

  • पूसा ड्रमहेड: – ब्लैक लेग प्रतिरोधी किस्म
  • पूसा मुक्ता: – ब्लैक रोट प्रतिरोधी किस्म
  • पूसा सिंथेटिक

सिन्थेटिक / संश्लिष्ट किस्म :- जब एक से अधिक उच्च GCA वाले अंत: प्रजातों का आपस में सभी संभव संयोजनों में संकरण कराकर समान मात्रा में बीजों को मिश्रित कर लिया जाता है तो इसे प्रकार बनी किस्म को संश्लिष्ट किस्म कहते हैं।

  • पूसा संबंध :- कम दूरी पर रोपण के लिए उपयुक्त, शीघ्र परिपक्व होने वाली, सिंथेटिक किस्म।  
  • कुएस्टो (Questo)
  • श्री गणेश गोल
  • उत्तम
  • बजरंग
  • ग्रीन बॉय :- अधिक तापमान के प्रति सहिष्णु (30-350C)
  • ग्रीन एक्स्प्रेस :- अधिक तापमान के प्रति सहिष्णु
  • ग्रीन चैलिन्जर
  • ग्रीन कॉर्नेट
  • सवर्णा
  • विशेष
  • सुधा
  • गंगा
  • कावेन
  • यमुना
  • हरी रानी
  • मीनाक्षी
  • स्टोन हेड
  • नाथ लक्ष्मी 401
  • बीजों शीतल 32
  • B.S.S.-32
  • N.L. 104

जलवायु

गोभी को इसके उचित विकास और उत्पादन के लिए एक ठंडी और नम जलवायु की आवश्यकता होती है। उत्तर भारत  में, सर्दियों के मौसम में इसकी खेती की जाती है। फूलगोभी की तुलना में पत्ता गोभी ठंढ को सहन करने में अधिक समर्थ होती है। बीज के अंकुरण के समय 12-160C तापमान की आवश्यकता होती है। जब तापमान 250C से ऊपर चला जाता है तो पौधे की वृद्धि रुक जाती है।

मिट्टी

पत्ता गोभी की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। बलुई दोमट मिट्टी अगेती फसल के लिए अच्छी मानी जाती है, साथ ही मुख्य फसल के लिए दोमट या सिल्ट दोमट मिट्टी को पसंद किया जाता है। औसत मिट्टी का pH 5.5-6.5 होना चाहिए। यदि मिट्टी अम्लीय है तो बुवाई से पहले चूना डालें।

बुआई का समय

किस्म

बीज बुआई का समय

रोपण का समय

अगेती

अगस्त

सितंबर

मुख्य

सितंबर

अक्टूबर

पछेती

अक्टूबर

नवंबर

 

बीज दर और बीज उपचार

एक हेक्टेयर भूमि के लिए लगभग 375-500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

बीज बोने से पहले अंकुरण को बढ़ाने के लिए सादे पानी में 4-5 घंटे उपचारित किया जाता है। नर्सरी बेड में फसल को डेमपिंग ऑफ से बचाने के लिए बुवाई से पहले बीजों को थायरम या कैप्टान @ 2-3 ग्राम / किग्रा बीज के साथ उपचारित किया जाना चाहिए। 

बुआई

बीजों को 1.2 मीटर चौड़ी नर्सरी बेड में बोया जाता है। नर्सरी में बोने से पहले, क्यारी की मिट्टी को फॉर्मलाडेहाइड के साथ कीटाणुरहित किया जाना चाहिए। आमतौर पर, बीजों को नर्सरी बेड पर छिड़क कर बोया जाता है। फिर बीज को ढंकने के लिए क्यारी पर FYM या खाद की एक पतली परत लगाई जानी चाहिए। बुआई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई झारे से करनी चाहिए। बीजों को लाइन में नहीं बोया जाता क्योंकि इस से डेमपिंग ऑफ रोग का नर्सरी में अधिक प्रकोप होता है।

खेत की तैयारी

खेत को 3-4 बार जुताई कर और मिट्टी को बेहतर बनाना चाहिए। तथा अंतिम जुताई पर 20-25 t / ha FYM को मिट्टी में डालना चाहिए।   

रोपाई

पौध बुवाई के 4-6 सप्ताह बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। पत्ता गोभी का रोपण समतल के साथ-साथ मेढ़ों पर भी किया जाता है। मेढ़ों पर रोपण अधिक किफायती होता है और व्यावसायिक रूप से उपयोग किया जाता हैं। मेढ़ों के मध्य 60 सेमी की दूरी और पौधों के मध्य 45 सेमी की दूरी रखी जाती हैं। रोपाई के बाद फसल की हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

खाद और उर्वरक

पत्ता गोभी पोषक तत्वों का अच्छा परिणाम देती है। आम तौर पर, 20-25 टन / हेक्टेयर FYM को खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए। मध्यम उपजाऊ मिट्टी में 220 किग्रा N, 100 किग्रा P और 220 किग्रा K की आवश्यकता होती है। फास्फोरस, पोटाश की पूरी खुराक, और N की आधी मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए और N की शेष खुराक टॉप-ड्रेसिंग के रूप में रोपाई के 5-6 सप्ताह बाद दी जाती है।

सिंचाई

पत्ता गोभी को अपने पूरे जीवन काल में नमी की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है। सामान्यतः 10-12 दिनों के अंतराल पर फसल की सिंचाई करनी चाहिए। जब हेड लगातार वृद्धि कर रहा होता है तब हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

दो सिंचाई के अंतराल में एक बार निराई-गुड़ाई करें। पत्ता गोभी उथली-जड़ वाली फसल है इसलिए पैदावार बढ़ाने के लिए निराई गुड़ाई अधिक फायदेमंद नहीं है। इसलिए रोपाई से एक दिन पहले ऑक्सीफ्लोरफेन @ 0.25Kg / हेक्टेयर की पूर्व-अंकुरण स्प्रे, नाइट्रोफेन @ 2 किग्रा / ha अथवा अलाक्लोर @ 2 Kg/ha का उपयोग खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।

तुड़ाई

जब हेड पूर्ण आकार प्राप्त कर लेता है और कठोर होता है तब तुड़ाई कर लेनी चाहिए। आम तौर पर, अगेती किस्में रोपाई के लगभग 70-80 दिनों बाद और पछेती किस्में 100-120 दिन बाद कटाई के लिए तैयार होती हैं। पत्ता गोभी के हेड को एक लंबे चाकू या दरांती से काटा जाता है। कटाई के बाद, बाहरी पत्तियों को आकर्षक बनाने के लिए हटा दिया जाता है इस से ट्रांसपोर्ट में भी सुविधा रहती है।

उपज

पत्ता गोभी की उपज मौसम, किस्म और क्षेत्र के अनुसार भिन्न भिन्न होती है। पत्ता गोभी की औसत उपज 20 -50 टन / हेक्टेयर होती है।

कीट प्रबन्धन

  1. पत्तागोभी और शलजम एफिड (ब्रेविकोरीन ब्रैसिका):- यह कीट पछेती फसल में अधिक गंभीर होता है जब इसे बीज उत्पादन के लिए छोड़ दिया जाता है। कीट कोमल भागों से रस चूसते हैं। बाद में झुर्रीदार, पत्तियों के नीचे-कर्लिंग, पत्तियों का पीलापन, पौधे की वृद्धि कम आदि लक्षण दिखाई देते है, प्रभावित पौधों पर एफिड हनीड्यू के साथ संदूषण देखा जाता है।

नियंत्रण

  • पौधे के विकास के शुरुआती चरण में अथवा बीज उत्पादन में मलाथियान या पैराथियोन का छिड़काव करना चाहिए। यदि हेड कटाई के लिए तैयार है तो निकोटीन सल्फेट को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  1. डायमंड बैक मोथ (प्लूटेला ज़ाइलोस्टेला):- यह गोभी का सबसे हानिकारक कीट है। पर्ण ऊतक को कीट के लार्वा खा जाता है और पत्ती की शिराएं रह जाती है, इससे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया प्रभावित होती है और पौधे की वृद्धि रुक जाती है। पत्तों का गिरना भी शुरू हो जाता है।

नियंत्रण

  • सरसों की फसल को फँसाने वाली फसल (Trap crop) के रूप में उगाएं
  • 4% नीम के बीज का तेल का छिड़काव करें
  1. पत्तागोभी का हेड छेदक या तना छेदक (हेलुला अंडलिस):- लट तने, पत्तियों और हेड में छेद कर देता है। जिससे पत्ता गोभी उपभोग के लिए अयोग्य हो जाती है।

नियंत्रण

  • फसल पर फेनवलरेट 20 ईसी या साइपरमेथ्रिन या डेल्टामेथ्रिन 28 ईसी 250 मिली का छिड़काव करें।
  • माइक्रोब्रैकोन मेलस और एपेंटेल्स क्रोसिडोलमिया का उपयोग जैविक नियंत्रण में किया जा सकता है।

रोग प्रबन्धन

  1. आद्र विगलन (फिथियम प्रजाति या राइजोक्टोनिया प्रजाति या फ्यूजेरियम प्रजाति):- डंपिंग-ऑफ एक नर्सरी क्यारी का रोग है। इस रोग में अंकुर/पौध के कॉलर क्षेत्र सड़ने लगते हैं और नर्सरी क्यारी पर पौध गिर जाते हैं जिससे पौध की मृत्यु हो जाती है।

नियंत्रण

  • बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टान 3 ग्राम / किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
  • दो बार कैप्टान 200 ग्राम / 100 लीटर पानी घोल को पौध के आसपास नर्सरी बेड की मिट्टी में डाले।
  • बीज को बोने से पहले 30 मिनट के लिए गर्म पानी (500C) से उपचारित किया जाना चाहिए।
  • बुवाई से पहले नर्सरी कयारी को फॉर्मलाडेहाइड से निष्फल (sterilize) किया जाना चाहिए।
  1. डाउनी मिल्ड्यू (पेरोनोस्पोरा पैरासिटिका):- प्रारंभिक लक्षण पत्ती की निचली सतह पर पर्पलिश-ब्राउन धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। अधिक प्रकोप होने पर तने पर गहरे धब्बे दिखाई देते हैं।

नियंत्रण

  • फसल चक्रण को अपनाना चाहिए।
  • खेत खरपतवार से मुक्त रखें।
  • बीज को बोने से पहले 30 मिनट के लिए गर्म पानी (500C) से उपचारित किया जाना चाहिए।
  • बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टान 3 ग्राम / किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
  1. ब्लैक लेग या ब्लैक रॉट (ज़ैंथोमोनस कैम्पेस्ट्रिस):- प्रारंभिक लक्षण पत्तियों के किनारों पर अंग्रेजी के ‘V’ के आकार के पीले घाव/धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में गहरे और भूरे हो जाते हैं। पत्तियों विकृत हो जाती है नसे / शिराएं काली पड़ जाती है जो बाद में सूख जाती हैं

नियंत्रण

  • बीज स्वस्थ होना चाहिए और स्वस्थ पौधों से लिया जाना चाहिए।
  • बीज को बोने से पहले 30 मिनट के लिए गर्म पानी (500C) से उपचारित किया जाना चाहिए।
  • बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टान 3 ग्राम / किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
  • स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 1 ग्राम का फसल पर छिड़काव करें।