Vegetable Science

फूल गोभी की खेती

भारत में कॉलीफ्लॉवर (ब्रैसिका ओलेरेसिया var बोट्राइटिस)) को ‘फूलगोभी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह ब्रिसिकैसी परिवार की एक महत्वपूर्ण कोल (Cole) फसल है जिसे उचित विकास के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है। भारत (33.2%) चीन (40.3%) के बाद दुनिया में फूलगोभी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। फूलगोभी भारत में सर्दियों के मौसम की महत्वपूर्ण सब्जियों में से एक है। भारत में, फूलगोभी से करी, सूप और अचार बनाना पसंद किया जाता है। फूलगोभी में विटामिन बी की अच्छी मात्रा और उचित मात्रा में प्रोटीन होता है। इस अध्याय में, आप इसकी खेती के बारे में विस्तार से पढ़ेंगे।

अन्य नाम:- कौलीफ़्लोवर (Cauliflower), फुलकपी

वानस्पतिक नाम:- ब्रैसिका ओलेरेसिया var बोट्राइटिस

कुल :- क्रूसीफेरी / ब्रैसिसेकी

गुणसूत्र संख्या :- 2n=18

उत्पति :- भूमध्यसागर क्षेत्र 

खाने वाला भाग:-कर्ड

फल प्रकार:- सिलिकुआ (एक bicarpillary फली)

महत्वपूर्ण बिंदु

  • फूलगोभी एक ताप-संवेदनशील फसल है।
  • फूलगोभी एक लंबे दिन का पौधा है।
  • यह पर- परागित फसल है।
  • फूलगोभी में Sporophytic self-incompatibility पाई जाती है।
  • फूलगोभी की श्वसन दर बहुत अधिक होती है।
  • चीन (10.67MT) के बाद भारत (8.8MT) दुनिया में फूलगोभी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
  • फूलगोभी की curding वनस्पति और प्रजनन अवस्था का मध्यवर्ती चरण है।
  • पछेती या स्नोबॉल प्रकार की किस्मों में self-blanching की आदत होती है।
  • फूलगोभी को भारत में लंदन से सर्वप्रथम 1822 में डॉ जेनसन लेकर आए थे।
  • यह भारत में मुगल काल के दौरान बाहर से लाकर उगाई गयी।
  • कौलीफ़्लोवर शब्द लैटिन शब्द ’कॉली’ से बना है जिसका अर्थ है गोभी, ‘फ्लारिस’ का अर्थ फूल और “botrytis’ का अर्थ नवोदित (budding)। फूल गोभी भी जंगली गोभी से उत्पन्न हुई है।
  • Blanching: – ब्लांचिंग एक ऐसी तकनीक है जो फूल को सीधे सूर्य की किरणों से पीला पड़ने से बचाती है और एंजाइमिक गतिविधि अवरुद्ध करने में मदद करती है।
  • स्कूपिंग (Scooping): – फूलगोभी में फूल के डंठल की आसान प्रारंभिक अवस्था के लिए curd के मध्य भाग को हटाना।
  • फूलगोभी में 91.7 ग्राम नमी, 4 ग्राम प्रोटीन, 4.9 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.11 मिलीग्राम विटामिन B1, 0.10 मिलीग्राम विटामिन B2, 90 IU विटामिन A, 3.6 मिलीग्राम विटामिन K और 60.00 मिलीग्राम विटामिन C प्रति 100% खाद्य भाग होता है।

क्षेत्र एवं उत्पादन

Sr. No.

राज्य

2018

क्षेत्रफल  (000 ha)

उत्पादन (000MT)

1

वेस्ट बंगाल

74.43

1939.48

2

बिहार

62.04

935.56

3

मध्य प्रदेश

46.47

1008.46

4

उड़ीसा

40.78

617.32

5

हरियाणा

39.88

699.00

6

गुजरात

24.99

553.60

 

अन्य

164.00

2914.8

 

कुल

452.59

8668.22

Source NHB 2018

किस्में

भारत में दो समूह उगाए जाते है

  1. भारतीय या उष्णकटिबंधीय प्रकार: – पिछले 80 वर्षों के दौरान भारत में पैदा हुआ है। इस समूह को 20°C या उससे ऊपर के तापमान की आवश्यकता होती है और यह समूह जलभराव और गर्मी के लिए सहिष्णु होता है।
  2. शीतोष्ण प्रकार या स्नोबॉल प्रकार: – स्नोबॉल प्रकार को ‘एरफर्ट’ के नाम से भी जाना जाता है। इस समूह को फूल बनाने के लिए 10°-16°C तापमान की आवश्यकता होती है और गर्मी के प्रति संवेदनशील होते है।

a) पुरस्थापित

  • इम्प्रूव्ड जापानी

b) Selection

  • पूसा हिमज्योति: – पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से जुलाई तक उगाने के लिए उपयुक्त, self-blanching की आदत।
  • पूसा स्नोबॉल के -1: – Black rot, curd and inflorescence blight प्रतिरोधी।
  • पूसा केतकी
  • पूसा दीपाली
  • पूसा अग्नि
  • पंत गोभी -4
  • पंत शुभ्रा

c) संकर 

  • पूसा शुभ्रा: – Black rot, curd and inflorescence blight प्रतिरोधी।
  • पूसा हाइब्रिड 2
  • कैन्डिड चारम
  • व्हाइट फ्लेश
  • कैश मोर
  • हिमानी
  • नाथ श्वेता
  • अर्ली हिमालता
  • नाथ उज्जवला
  • पूसा स्नोबॉल K-2S: – स्क्लेरोटेरिया रोट प्रतिरोधी

d) सिन्थेटिक

  • पूसा अर्ली सिंथेटिक
  • पूसा सिंथेटिक
  • पंत गोबी -3

सिन्थेटिक / संश्लिष्ट किस्म :- जब एक से अधिक उच्च GCA वाले अंत: प्रजातों का आपस में सभी संभव संयोजनों में संकरण कराकर समान मात्रा में बीजों को मिश्रित कर लिया जाता है तो इसे प्रकार बनी किस्म को संश्लिष्ट किस्म कहते हैं।

1. अगेती किस्में

  • अर्ली कुँवारी
  • अर्ली पटना
  • पूसा अर्ली सिंथेटिक
  • पूसा दीपाली
  • पूसा केतकी
  • पंत गोबी -2
  • पंत गोबी -3

2. मध्य किस्में

  • इम्प्रूव्ड जापानी
  • पूसा शुभ्रा
  • पंत शुभ्रा
  • पूसा शरद
  • पूसा अग्नि
  • पूसा हाइब्रिड 2

3. पछेती किस्में

  • पूसा स्नोबॉल -1
  • पूसा स्नोबॉल -2
  • पूसा स्नोबॉल के -1

जलवायु

फूलगोभी को इसके उचित विकास और उत्पादन के लिए एक ठंडी और नम जलवायु की आवश्यकता होती है। फूल गोभी की खेती के लिए 15°-20°C तापमान उपयुक्त रहता है, यह अधिकतम 25°C और न्यूनतम 9°C को सहन कर सकती है। उष्णकटिबंधीय या भारतीय किस्मों को जल्दी उगने के लिए उच्च तापमान और लंबे दिन की अवधि की आवश्यकता होती है, जबकि, स्नोबॉल प्रकार या देर से पकने वाली किस्मों को उष्णकटिबंधीय किस्मों की तुलना में कम तापमान की आवश्यकता होती है और अपेक्षाकृत छोटी दिन की अवधि में बेहतर प्रदर्शन करती हैं।

मिट्टी

फूलगोभी सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जाती है लेकिन गहरी, अच्छे जल निकास वाली, कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी उत्तम होती है। मिट्टी औसत pH रेंज 5.5-6.6 है। फूलगोभी अत्यधिक अम्लीय मिट्टी के प्रति संवेदनशील होती है।

बुआई का समय और बीज दर

किस्में

बीज बोने का समय

रोपण  

बीज दर

अगेती

मध्य मई – जून

जुलाई

500-600

मध्य

मध्य जुलाई -अगस्त

सितंबर

350-400

पछेती

मध्य सितंबर – अक्टूबर

नवंबर

350-400

बीजोपचार

मौसम के अनुसार एक हेक्टेयर भूमि के लिए नर्सरी बढ़ाने के लिए लगभग 350-600 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

फसल को बीज जनित रोगों से बचाने के लिए 30 मिनट के लिए गर्म पानी (50°C) के साथ उपचारित किया जाता है। नर्सरी बेड में पौध को डम्पिंग ऑफ से बचाने के लिए बुवाई से पहले बीजों को थायरम या कैप्टान @ 2-3 ग्राम / किग्रा बीज के साथ उपचारित किया जाता है।

बुआई

बीज को एक उठी हुई नर्सरी क्यारी में बोया जाता है। नर्सरी बोने से पहले, क्यारी की मिट्टी को फॉर्मलाडेहाइड से sterilize किया जाना चाहिए। आमतौर पर, बीजों को नर्सरी क्यारी पर छिड़क कर बोया जाता है। फिर बीज को ढकने के लिए क्यारी पर FYM या खाद की एक पतली परत लगानी चाहिए। क्यारी की बुआई के उपरान्त सूखी घास से मल्च कर देना चाहिए। बुआई के तुरन्त बाद झारे से हल्की सिंचाई करनी चाहिए।

खेत की तैयारी

भूमि की 3-4 बार जुताई करनी चाहिए और मिट्टी को बेहतर बना लेना चाहिए। और अंतिम जुताई पर 20-25 t / ha FYM खेत में मिलाए।

रोपाई

पौध बुवाई के 4-6 सप्ताह बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। फूलगोभी का रोपण समतल के साथ-साथ मेढ़ो पर भी किया जाता है। मेढ़ो पर रोपण अधिक किफायती और व्यावसायिक रूप से उपयोग किया जाता हैं। लाइन से लाइन की दूरी 60 सेमी और पौधे से पौधे के बीच 45 सेमी की दूरी रखी जाती हैं। रोपाई के तुरन्त बाद फसल की हल्की सिंचाई करनी चाहिए। मध्य या पछेती किस्मों को अगेती किस्मों की तुलना में अधिक दूरी पर उगाया जा सकता है।

खाद और उर्वरक

आम तौर पर, 20-25 टन / हेक्टेयर FYM को खेत की तैयारी के समय P2O5 और K2O की पूरी मात्रा के साथ दिया जाना चाहिए। अगेती फसल में, N को 2 भागों में दिया जाता है। जबकि मध्य या पछेती किस्मों में N को 3 भागों में दिया जाता है पहली 1/3  N की मात्रा बुवाई के समय, दूसरी 1/3 N की मात्रा को बुआई के 15 दिन बाद तथा अंतिम 1/3 N की मात्रा बुआई के 40-45 दिन बाद देनी चाहिए। मध्यम उपजाऊ मिट्टी में लगभग 60-150 किलोग्राम N /ha, 50-80 किलोग्राम P/ha और 60-120 किलोग्राम K/ ha की आवश्यकता होती है।

कभी-कभी फूलगोभी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी देखने को मिलती है, इसलिए बोरॉन कमी को ठीक करने के लिए 10-15 किग्रा बोरेक्स / हेक्टेयर को फूल बनाने के 2 सप्ताह पहले मिट्टी में मिला देना चाहिए। बोरेक्स का 0.1% छिड़काव भी प्रभावी है। 2.5-5 किग्रा / हेक्टेयर सोडियम मोलिब्डेट या 0.05% सोडियम मोलिब्डेट का पर्णीय छिड़काव मोलिब्डेनम की कमी वाली मिट्टी में लाभदायक होता हैं।

सिंचाई

रोपाई के तुरंत बाद फसल की सिंचाई करें। मानसून के मौसम में अगेती और मध्य-मौसम की फसल के लिए केवल सुरक्षात्मक सिंचाई की आवश्यकता होती है। फूलगोभी को विकास की अवधि में नमी की निरंतर आपूर्ति की आवश्यकता होती है। मानसून की वर्षा के आधार पर फसल को 4-5 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

अंतर शस्य और खरपतवार नियंत्रण

चूंकि फूलगोभी उथली जड़ वाली फसल है, इसलिए थोड़े थोड़े समय बाद उथली गुड़ाई कर खरपतवार से मृदा को मुक्त करने के साथ मल्च प्रदान करना चाहिए। रोपाई के 30-40 दिन बाद फसल के साथ मिट्टी चढ़ानी चाहिए। कुछ खरपतवारनाशीयों का उपयोग खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है, जैसे रोपाई से एक दिन पहले ऑक्सीफ्लोरोफेन @ 0.25Kg / हेक्टेयर का छिड़काव, फ्लुक्लोरलिन @ 1.2 किग्रा। प्रति हेक्टेयर या अल्लाक्लोर @ 50 किलोग्राम / हेक्टेयर भी प्रभावी होता है।

तुड़ाई

जब फूल गोभी का फूल पूर्ण आकार प्राप्त कर लेता है और सफेद रंग का और कॉम्पैक्ट होता है तोड़ लेना चाहिए। यदि फसल की कटाई में देरी हो जाती है तो फूल का रंग बदल जाता है जो उपभोक्ताओं द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है। एक ही समय में सभी फूल समान रूप से विकसित नहीं होते हैं, इसलिए कई बार तुड़ाई की आवश्यकता होती है। फूल को चाकू या दरांती से काटें और नीचे की पत्तियों को निकाल देना चाहिए।

उपज

फूलगोभी की उपज मौसम और किस्म पर निर्भर करती है। फूलगोभी की अगेती किस्मों की औसत उपज 12-15 टन / हेक्टेयर और मध्य और पछेती किस्मों से 20 -30 टन / हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है।

भौतिक विकार

  1. ब्राउनिंग (Browning): – फूलगोभी की यह विकार बोरान की कमी के कारण होती है, इसमें तने और फूल की सतह पर जलसक्त भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। तना अंदर से खोखला हो जाता है। अन्य लक्षण जैसे पत्ती के रंग में परिवर्तन, मोटाई में परिवर्तन, पत्ते के नीचे की ओर मुड़ जाना आदि देखने को मिलते है।

प्रबन्धन

  • बुवाई से पहले 10-15 किलोग्राम / हेक्टेयर बोरेक्स या सोडियम बोरेट को अम्लीय मिट्टी में दिया जाना चाहिए।
  • 25-0.50% बोरेक्स का पर्णीय छिड़काव भी लाभदायक रहता है
  1. ह्विप टैल (Whip tail): – यह विकार फूलगोभी में मोलिब्डेनम की कमी के कारण होता है। पत्ती के ब्लेड ठीक से विकसित नहीं होते हैं, केवल मध्य शिरा (midrib) विकसित होती है। पत्तियाँ भी चमड़े की तरह अनियमित हो जाती हैं। यह विकार अम्लीय मिट्टी में पाया जाता है, जहां मोलिब्डेनम की कमी होती है।

प्रबन्धन

  • सोडियम या अमोनियम मोलिब्डेट 1 किग्रा / हे को खेत में देना चाहिए।
  • 1% अमोनियम मोलिब्डेट का पर्ण स्प्रे भी फायदेमंद है।
  • बुवाई से पहले अम्लीय मिट्टी में चूना डालकर pH को 6-.6.5 लाएं।
  1. बटनिंग (Buttoning): – पौधो पर छोटे फूल बनते है जिन्हे बटन कहा जाता है पौधा अधिक वृद्धि नहीं करता और  पत्तियां भी  छोटी रह जाती है।

कारण

  • क्षेत्र में नाइट्रोजन की कमी।
  • अगेती किस्म की बुवाई देरी से करने के कारण या कम तापमान में अगेती किस्म की बुवाई।
  • खराब जल निकासी की सुविधा।
  • पुरानी पौध का रोपण।

प्रबंध

  • नाइट्रोजन की अनुशंसित मात्रा देनी चाहिए।
  • खेत जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
  • पुराने पौध के रोपण से बचें।
  • देर से या कम तापमान में अगेती किस्मों के रोपण से बचें।
  1. ब्लाइनड़नेस (Blindness) :- फूलगोभी के पौधो में टर्मिनल कली बिल्कुल भी नहीं बनती है। पत्तियां चमड़ायुक्त और गहरे हरे रंग की हो जाती हैं।

कारण

  • पाले के कारण
  • अनुचित हैंडलिंग के कारण शीर्ष (टर्मिनल) कली को नुकसान होने के कारण।
  • रोग एवं कीट से टर्मिनल कली के घायल होने के कारण।

प्रबंधन

  • पौधे को कम तापमान से बचाएं।
  • प्रारंभिक अवस्था में पौधे को यांत्रिक या कीट की चोट से बचाएं।
  1. खोखला तना (Hollow Stem): – फूलगोभी के तने और फूल को काट कर देखा जाये तो यह अंदर से खोखला होता है

कारण

  • खेत में अधिक नाइट्रोजन के कारण

प्रबंधन

  • नाइट्रोजन की अनुशंसित मात्रा देनी चाहिए।
  1. क्लोरोसिस (Chlorosis):पुरानी पतियों और शिराओं में कलोरोसिस दिखाई देती है जब फूल गोभी को अम्लीय मिट्टी में उगाया जाता है। फूल गोभी को मेग्नेशियम (magnesium) की अधिक आवश्यकता होती है परन्तु यह अम्लीय मिट्टी में उपलब्ध नहीं होती है। मेग्नेशियम की कमी के कारण पत्तियां पीले रंग की हो जाती है।

 प्रबन्धन

  • बुवाई से पहले अम्लीय मिट्टी में चूना डालकर pH को 6-.6.5 लाएं।
  • अम्लीय मिट्टी में खेती से बचें।
  • 300 kg मेग्नेशियम आक्साइड (Magnesium oxide) खेत की तैयारी के समय डालना चाहिए।
  1. फ़्यूज़नेस (Fusiness):पुष्प वृन्त (pedicels) बढ़ने के कारण fussy दिखाई देता है। पुष्प वृन्त बढ़ने के कारण फूल गोभी का फूल की सतह एक जैसी दिखाई नहीं देती और फूल गूँथा हुआ नहीं बनता है। यह विकार वंशागत और गैर-वंशागत हो सकता है। फूल गोभी की किस्मों को समय के अनुसार न उगाने के कारण यह विकार होता है।

प्रबंधन

  • किस्मों को समय के अनुसार अगेती, मध्य और पछेती को उगाना चाहिए।
  1. राइसिनेस (Riceyness): फूल गोभी का फूल पुष्प वृन्त की लंबाई बढ़ने के कारण ढीला रह जाता है और फूल की सतह मखमली (velvety) की तरह दिखाई देती है। इस पर सफेद छोटे छोटे पुष्प बन जाते है जिन्हे ricey कहते है।

कारण

  • तापमान में उतार चढ़ाव के कारण
  • असामान्य तापमान
  • खेत में अधिक नाइट्रोजन के कारण
  • अधिक अद्रता के कारण

प्रबन्धन

  • किस्मों को समय के अनुसार अगेती, मध्य और पछेती को उगाना चाहिए।
  • प्रतिरोधी किस्मों को उगाना चाहिए।
  • नाइट्रोजन की अनुशंसित मात्रा देनी चाहिए।
  1. पत्तेदारपन (Leafyness): – फूल के मध्य में छोटी छोटी पत्तियां बनाने लगती है बोने के समय अधिक तापमान होने के कारण यह विकार देखने को मिलता है।

प्रबंधन

  • किस्मों को समय के अनुसार अगेती, मध्य और पछेती को उगाना चाहिए।

कीट प्रबन्धन

  1. पत्तागोभी और शलजम एफिड (ब्रेविकोरीन ब्रैसिका):- यह कीट पछेती फसल में अधिक गंभीर होता है जब इसे बीज उत्पादन के लिए छोड़ दिया जाता है। कीट कोमल भागों से रस चूसते हैं। बाद में झुर्रीदार, पत्तियों के नीचे-कर्लिंग, पत्तियों का पीलापन, पौधे की वृद्धि कम आदि लक्षण दिखाई देते है, प्रभावित पौधों पर एफिड हनीड्यू के साथ संदूषण देखा जाता है।

नियंत्रण

  • पौधे के विकास के शुरुआती चरण में अथवा बीज उत्पादन में मलाथियान या पैराथियोन का छिड़काव करना चाहिए। यदि हेड कटाई के लिए तैयार है तो निकोटीन सल्फेट को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  1. डायमंड बैक मोथ (प्लूटेला ज़ाइलोस्टेला):- यह गोभी का सबसे हानिकारक कीट है। पर्ण ऊतक को कीट के लार्वा खा जाता है और पत्ती की शिराएं रह जाती है, इससे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया प्रभावित होती है और पौधे की वृद्धि रुक जाती है। पत्तों का गिरना भी शुरू हो जाता है।

नियंत्रण

  • सरसों की फसल को फँसाने वाली फसल (Trap crop) के रूप में उगाएं
  • 4% नीम के बीज का तेल का छिड़काव करें
  1. पत्तागोभी का हेड छेदक या तना छेदक (हेलुला अंडलिस): लट तने, पत्तियों और हेड में छेद कर देता है। जिससे पत्ता गोभी उपभोग के लिए अयोग्य हो जाती है।

नियंत्रण

  • फसल पर फेनवलरेट 20 ईसी या साइपरमेथ्रिन या डेल्टामेथ्रिन 28 ईसी 250 मिली का छिड़काव करें।
  • माइक्रोब्रैकोन मेलस और एपेंटेल्स क्रोसिडोलमिया  का उपयोग जैविक नियंत्रण में किया जा सकता है।
  1. ग्राम कैटरपिलर (हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा):- रोयेंदार सूँडी फूल को छेदित कर उसे खाने योग्य नहीं छोड़ती।

नियंत्रण

  • सूँडीओ को इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • फसल पर एंडोसुल्फान 0.1% का छिड़काव करना चाहिए।

रोग प्रबन्धन

  1. आद्र विगलन (फिथियम प्रजाति या राइजोक्टोनिया प्रजाति या फ्यूजेरियम प्रजाति):- डंपिंग-ऑफ एक नर्सरी क्यारी का रोग है। इस रोग में अंकुर/पौध के कॉलर क्षेत्र सड़ने लगते हैं और नर्सरी क्यारी पर पौध गिर जाते हैं जिससे पौध की मृत्यु हो जाती है।

नियंत्रण

  • बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टान 3 ग्राम / किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
  • दो बार कैप्टान 200 ग्राम / 100 लीटर पानी घोल को पौध के आसपास नर्सरी बेड की मिट्टी में डाले।
  • बीज को बोने से पहले 30 मिनट के लिए गर्म पानी (50°C) से उपचारित किया जाना चाहिए।
  • बुवाई से पहले नर्सरी क्यारी को फॉर्मलाडेहाइड से निष्फल (sterilize) किया जाना चाहिए।
  1. डाउनी मिल्ड्यू (पेरोनोस्पोरा पैरासिटिका):- प्रारंभिक लक्षण पत्ती की निचली सतह पर पर्पलिश-ब्राउन धब्बों के रूप में दिखाई देते हैं। अधिक प्रकोप होने पर तने पर गहरे धब्बे दिखाई देते हैं।

नियंत्रण

  • फसल चक्रण को अपनाना चाहिए।
  • खेत खरपतवार से मुक्त रखें।
  • बीज को बोने से पहले 30 मिनट के लिए गर्म पानी (50°C) से उपचारित किया जाना चाहिए।
  • बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टान 3 ग्राम / किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
  1. ब्लैक लेग या ब्लैक रॉट (ज़ैंथोमोनस कैम्पेस्ट्रिस):- प्रारंभिक लक्षण पत्तियों के किनारों पर अंग्रेजी के ‘V’ के आकार के पीले घाव/धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में गहरे और भूरे हो जाते हैं। पत्तियों विकृत हो जाती है नसे / शिराएं काली पड़ जाती है जो बाद में सूख जाती हैं

नियंत्रण

  • बीज स्वस्थ होना चाहिए और स्वस्थ पौधों से लिया जाना चाहिए।
  • बीज को बोने से पहले 30 मिनट के लिए गर्म पानी (50°C) से उपचारित किया जाना चाहिए।
  • बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टान 3 ग्राम / किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
  • स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 1 ग्राम का फसल पर छिड़काव करें।
  1. सॉफ्ट रॉट (इरविनिया कैवोटोवोरा):- यह बीमारी सामान्य रूप से ब्लैक रोट अथवा यांत्रिक क्षति के बाद दिखाई देती है।

नियंत्रण

  • बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टान 3 ग्राम / किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
  • यांत्रिक क्षति से बचाना चाहिए।
  1. क्लबरूट (प्लाज्मोडियोफोरा ब्रैसिका):- पहले लक्षण पौधे के वायुवीय भागों में धूप के दिनों में पत्ते के पीले पड़ने और मुरझाने के रूप में दिखाई देते हैं। संक्रमित पौधे की जड़ों में बड़े क्षेत्र में सूजन के कारण क्लब बन जाते हैं जो विभिन्न आकार और आकृति के होते हैं।

नियंत्रण

  • मिट्टी क्षारीय होनी चाहिए क्योंकि अम्लीय मिट्टी में यह अधिक होती है।
  • लंबे फसल चक्र को अपनाना चाहिए।
  1. पत्ती धब्बा (अल्टरनेरिया ब्रैसिसिकोला):- पत्तियों एवं तने पर काले धब्बे दिखाई देते है। यह रोग बीज अथवा मिट्टी जनित हो सकता है।

नियंत्रण

  • बीज को बोने से पहले 30 मिनट के लिए गर्म पानी (50°C) से उपचारित किया जाना चाहिए।
  • बीज को बुवाई से पहले थायरम या कैप्टान 3 ग्राम / किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
  • बुवाई से पहले नर्सरी क्यारी को फॉर्मलाडेहाइड से निष्फल (sterilize) किया जाना चाहिए।