Basic Horticulture

ग्राफ्टिंग

Grafting is the technique of propagation in which scion sticks and rootstock in a manner such that they may unite and subsequently grow and develop as a successful plant.

‘ग्राफ्टिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा दो जीवित भागों को एक साथ इस तरह से जोड़ा जाता है कि वे एक साथ जुड़ जाए और बाद में एक समग्र पौधे के रूप में वृद्धि करें।’ आमतौर पर ग्राफ्टिंग के दो भाग होते हैं, सांकुर (Scion) और मूलवृंत Rootstock)।

सांकुर (Scion)

सांकुर ग्राफ्ट संयोजन के उस हिस्से को संदर्भित करता है जो पौधे के ऊपरी भाग को बनाता है। सांकुर शाखा 3 या अधिक निष्क्रिय (dormant) कलियों वाली शाखा का छोटा टुकड़ा है, जो रूटस्टॉक या इंटर-स्टॉक के साथ जुड़ कर,   ग्राफ्ट के ऊपरी हिस्से के रूप में वृद्धि करता है और जिसमें से तने या शाखाएं या दोनों का विकास होता। यह वांछित किस्म का होना चाहिए और रोगों से मुक्त होना चाहिए।

मूलवृंत (Rootstock)

मूलवृंत ग्राफ्ट का निचला भाग है, जो ग्राफ्टेड पौधे की जड़ प्रणालियों में विकसित होता है। यह एक बीजू, एक कलम से, या  टिशू कल्चर से प्रवर्धित पौधा हो सकता है।

इंटर-स्टॉक (Inter stock)

इंटर-स्टॉक, सांकुर और मूलवृंत के बीच दो ग्राफ्ट यूनियनों के माध्यम से डाला गया तने का एक टुकड़ा है। इंटर-स्टॉक का उपयोग मूलवृंत और सांकुर के बीच असंगति से बचने के लिए, विशेष वृक्ष रूपों का उत्पादन करने, बीमारियों को नियंत्रित करने, या इसके विकास को नियंत्रित करने वाले गुणों का लाभ उठाने के लिए किया जाता है।

संवहनी कैंबियम (Vascular cambium)

संवहनी कैंबियम छाल और लकड़ी के बीच स्थित एक पतला ऊतक है। इसकी कोशिकाएं मेरिस्टेमेटिक हैं यानी वे नई कोशिकाओं को विभाजित करने और बनाने में सक्षम हैं। सफल ग्राफ्ट-यूनियन के लिए, सांकुर के कैम्बियम को मूलवृंत के कैम्बियम के निकट संपर्क में रखा जाता है।

कैलस (Callus)

कैलस एक शब्द है जो पैरेन्काइमाटिक कोशिकाओं के द्रव्यमान पर लागू होता है जो घायल पौधों के ऊतकों से और उसके आसपास विकसित होते हैं। यह एक ग्राफ्ट यूनियन के जोड़ पर होता है, जो सांकुर और मूलवृंत दोनों की जीवित कोशिकाओं से उत्पन्न होता है। इन पैरेन्काइमाटिक कोशिकाओं (कैलस) का उत्पादन और इंटरलॉकिंग एक सफल ग्राफ्ट में सांकुर और मूलवृंत के बीच कैलस ब्रिज निर्माण में महत्वपूर्ण चरणों में से एक है।

सफल ग्राफ्टिंग के लिए तत्व

किसी भी सफल ग्राफ्टिंग ऑपरेशन के लिए पांच महत्वपूर्ण तत्व हैं। जो निम्न प्रकार है :

  1. मूलवृन्त और सांकुर शाखा संगत (Compatible) होनी चाहिए।
  2. सांकुर शाखा के संवहनी कैंबियम को मूलवृन्त के कैंबियम के साथ मिलान किया जाना चाहिए।
  3. ग्राफ्टिंग ऑपरेशन ऐसे समय में किया जाना चाहिए जब मूलवृन्त और सांकुर शाखा उचित शारीरिक अवस्था में हों।
  4. ग्राफ्टिंग के पूरा होने के तुरंत बाद, सभी कट सतहों को सड़न desiccation से बचाया जाना चाहिए।
  5. ग्राफ्टिंग के बाद कुछ समय तक ग्राफ्ट की उचित देखभाल की जानी चाहिए।

Types of Grafting

  1. Veneer Grafting: –

यह विधि आम प्रवर्धन में उपयोग की जाती है पेंसिल की मोटाई की 10 से 15 cm. लंबी सांकुर शाखा का चुनाव किया जाता है इसे ग्राफटिंग के 10 दिन पूर्व पत्तियां (defoliate) हटा दी जाती है जिससे सुसुप्त कलिया सक्रिय हो जाती है

मूलवृत के निचले भाग में एक कम गहरी नीचे की तरफ खांच बनाई जाती है जो v शब्द जैसी होती है अब सांकुर शाखा के नीचे के भाग को भी खांच के अनुरूप उलटे v के अनुसार तैयार किया जाता है तैयार सांकुर शाखा को खांच में फसा कर दोनों के मध्य खाली जगह को मोम से भर दिया जाता है ओर कस कर बांध देते है लगभग 3-4 सप्ताह में जुड़ाव होने के उपरांत मूलवृत को ऊपर से काट दिया जाता है

  1. Whip Grafting: –

इस विधि के अंतर्गत मूलवृत को धरातल से 22.5 सेमी ऊंचाई से काट देते है चाकू की सहायता से छाल तथा लकड़ी को काटते हुए एक तिरछा ढलावदार कटाव लगभग 2.5 से 4 सेमी की लंबाई में बनाते है अब 10 से 15 सेमी लंबी तथा 4 से 6 कलियों वाली शाखा मातर् पोधे से अलग करते है तथा मूलवृत की कटान के बराबर ही निचले सिरे पर ढलानदार कटान बनाकर दोनों को आपस में मिलाकर रोपण पट्टिका से बांध दिया जाता है जब जुड़ाव हो जाए तब पट्टी को हटा देना चाहिए नहीं तो पट्टी वृद्धि को रोक देती है EX.- अखरोट, सेब, नाशपाती आदि

  1. Tongue Grafting: –

यह विधि whip grafting की तरह ही होती है इस विधि में तिरछा ढलानदार कट लगाकर मूलवृत तथा सांकुर शाखा को तैयार किया जाता है फिर इसी कट में दूसरा कट उलटी दिशा में लगाया जाता है दूसरा कट नीचे की तरफ से 1\3 भाग ऊपर पहले कट की 1\2 लंबाई तक लगाया जाता है एसे कट के कारण मूलवृत तथा सांकुर शाखा एक दूसरे में इस प्रकार फस जाती है कि वह आसानी से हिल नहीं सकती मूलवृत ओर सांकुर शाखा को पॉलिथीन ली पट्टी से बांध दिया जाता है इस विधि में सफलता की संभावना अधिक होती है उदाहरण ;- pomegranate, apple, pear and अखरोट आदि।

  1. Cleft Grafting: –

यह पौधे में शिखर रोपण (top working) की पुरानी विधि है आम, हेजलनट, पेकानट, अंगूर में उपयोग की जाती है शिखर रोपण के लिए शाखाओ का आस 2.5 cm. से 10 cm. होना चाहिए पौधों की ऐसी जातियाँ जिनकी काष्ट के रेशे सीधे होते है उनमें यह विधि बहुत प्रभावी होती है शाखाओ को ऊपर से काटने के बाद इनमे 5 से 10 cm. गहरी खांच बनाई जाती है पेंसिल की मोटाई की 8 से 15 cm. लंबी सांकुर शाखा का चुनाव किया जाता है सांकुर शाखा को नीचे की तरफ में वेज की तरफ मूलवृत की खांच की लंबाई में तैयार किया जाता है ओर इसे मूलवृत की खांच में फसा कर मोम से खाली जगह को भर दिया जाता है

यह विधि छोटे पौधो में भी उपयोग की जा सकती है छोटे पौधे जो एक साल पुराने हो तथा पेंसिल की मोटाई के हो चुने जाते है पौधे को ऊपर से काट दिया जाता है इसमे 2.5 से 3 cm. गहरी खांच बनाई जाती है ओर सांकुर शाखा को भी इसी के अनुरूप तैयार कर खांच में फसा देते है ओर पॉलिथीन की पट्टी से बांध देते है 3-4 सप्ताह बाद जुड़ाव होने के उपरांत पट्टी को हटा दिया जाता है

  1. Wedge Grafting: –

इस विधि को भी शिखर रोपण में काम लिया जाता है इस विधि में v आकार की खांच मूलवृत में बनाया जाता है खांच की लंबाई 5 cm. तक रखी जाती है सांकुर शाखा को नीचे से नुकीला खांच के बराबर बनाया जाता है ओर सांकुर शाखा को मूलवृत में फसा कर खाली जगह को मोम से भर जाता है

  1. Bridge Grafting: –

यह विधि पुराने पेड़ों की मरम्मत में उपयोग ली जाती है जिन पुराने पेड़ों के तने मध्य से अथवा collar region से क्षतिग्रस्त हो जाते है उनके लिए यह विधि एक वरदान की तरह है उसी पेड़ की पर्याप्त लंबाई की शाखाओ को scion के रूप में चुना जाता है पेड़ के क्षतिग्रस्त भाग के उपर तथा नीचे स्वस्थ भाग में गहरी खांचे बनाई जाती है शाखाओ को दोनों तरफ से नुकीले खांच के अनुरूप तैयार कर लिया जाता है शाख के टुकड़ों को नीचे ओर ऊपर फसा कर मोम से खाली जगह को भर दिया जाता है इन शाखाओ से निकलने वाली शाखाओ को समय समय पर हटाते रहते है धीरे धीरे शाखों का व्यास बदने लगता है ओर क्षतिग्रस्त भाग की जगह ले लेता है इस विधि से सेब, नाशपती, चेरी, अखरोट जैसे फलो के वृक्षों की मरम्मत की जाती है

  1. Epicotyl Grafting / Stone Grafting: –

इस विधि में आम के 7-10 दिन पुराने पौधों का चुनाव किया जाता है इस समय पौधों की नई पत्तियो का रंग तांबे जैसा लाल होता है ओर नया अंकुरित पौधा अभी भी बीज | गुठली (stone) से जुड़ा हुआ होता है इसलिए इस विधि को stone  grafting  की संज्ञा दी जाती है नये अंकुरित पौधे को जमीन में 10 cm. की लंबाई से काट दिया जाता है और इसमे एक लम्बवत खांच चाकू से बना दी जाती है 2-3 माह पुरानी और पेंसिल की मोटाई की सांकुर शाखा को grafting के लिए चुना जाता है सांकुर शाखा में grafting 10 दिन पूर्व पत्तियों को हटा देना चाहिए अब शाखा को मातर् पौधे से अलग कर लिया जाता है और स्फान (wadge) की तरह चीरे की लंबाई के बराबर तैयार कर लेते है सांकुर शाखा को मूलवृत के चीरे में फँसाने के बाद इसे पट्टी से बांध दिया जाता है इस विधि का उपयोग June-July जब पर्याप्त नमी हो जाती है

  1. Soft Wood Grafting: –

इस विधि को ग्राफटिंग की in-situ विधि भी कहा जाता है क्योंकि grafting सीधे खेत में ही की जाती है इस विधि में बीजों को तैयार खेत में उचित रोपण दूरी पर लगा दिया जाता है प्रत्येक गड्डे में 2 से 3 बीजों को रोपा जाता है जब पौध एक साल पुरानी हो जाती है अथवा पेंसिल की मोटाई की हो जाती है तो उस पर निम्न विधि से grafting की जाती है

मूलवृत अथवा पौधे को जमीन से 10-15 cm. की ऊंचाई से काट दिया जाता है और इसमे 2.5 से 4 cm. लंबी खांच बनाई जाती है अब पेंसिल की मोटाई की 10-15 cm. लंबी 3-5 माह पुरानी शाखा को मातर् पौधे से अलग कर ली जाती है शाखा को नीचे की तरफ से स्फान (wedge) आकार में तैयार कर मूलवृत की खांच में फसा दिया जाता हैं और पट्टी से बांध दिया जाता है समान्यता इस विधि का उपयोग बरसात के दिनों में जब पौधे पर नई वृद्धि दिखाई देती है तब करना चाहिए यह विधि आम के लिए उपयोगी होती।

  1. Inarching: –
  • इसे grafting का attached method भी कहा जाता है दूसरी grafting की विधियों की तुलना में इस विधि में सांकुर शाखा को पैतृक पौधे से जुड़ाव होने के उपरांत काटा जाता है
  • इस विधि का उपयोग आम, कटहल, चीकू, सीताफल आदि में किया जाता है इस विधि में गमले अथवा पॉलिथीन में उगे हुए मूलवृत का उपयोग किया जाता है
  • मूलवृत पेंसिल की मोटाई का होना चाहिए इसी मोटाई की शाखा का चुनाव पैतृक पौधे पर किया जाता है
  • सांकुर शाखा और मूलवृत पर चाकू की सहायता से छाल और लकड़ी को काटता हुआ हल्का चीर अथवा कटाव बनाया जाता है
  • अब मूलवृत को टेबल पर रख कर पैतृक पौधे की उस शाखा तक पहुंचाया जाता है और दोनों के चीरे अथवा कटाव को मिलकर पॉलिथीन पट्टी से बांध दिया जाता है
  • जुड़ाव से कुछ दिनों बाद जब जुड़ाव हो जाता है तब मूलवृत का जुड़ाव से ऊपरी भाग तक तथा सांकुर शाखा का निचला भाग 2 से 3 बार में धीरे धीरे काट देते है
  • इस विधि का उपयोग July-August में जब अधिक आद्रता हो किया जाता है।
  1. Double Working: –
  • कुछ मामलों में, सांकुर शाखा की किस्म को सीधा मूलवृंत पर लगाने पर वो ग्राफटिंग सफल नहीं होती। इस स्थिति बचने के लिए, मूलवृंत और सांकुर शाखा के बीच एक इंटरस्टॉक का उपयोग किया जाता है।
  • इंटरस्टॉक का चुनाव करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि इंटरस्टॉक, मूलवृंत और सांकुर शाखा दोनों के साथ संगत हो। डबल वर्किंग करने की प्रक्रिया दो क्रमिक वर्षों में पूरी होती है।
  • पहले साल के दौरान, इंटरस्टॉक की ग्राफ्टिंग मूलवृंत पर की जाती है, और दूसरे साल के दौरान सांकुर शाखा किस्म की ग्राफ्टिंग इंटरस्टॉक पर की जाती है।
  • डबल वर्किंग मुख्य रूप से नाशपाती में की जाती है।
  1. Top Working
  • यह अवांछनीय पौधे को एक वांछनीय प्रकार में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है।
  • आमतौर पर, फलों के बीजू पौधे शीर्ष पर काम करने के लिए उपयुक्त होते है।
  • इस प्रक्रिया को शुरू करने के लिए, पौधों के शीर्ष को वसंत के दौरान जमीनी स्तर से एक मीटर ऊंचाई के ऊपर से कट दिया जाता है।
  • युवा पौधों से 2.5-20 सेमी व्यास की शाखा को टॉप वर्किंग करने के लिए आदर्श माना जाता है।
  • शीर्ष से कटे हुए बीजू पौधे पर उगी हुई नई शाखाओं को जून जुलाई में कलिकायन अथवा ग्राफटिंग के लिए उपयोग कर उस पौधे को नई जिंदगी दी जाती है
  • सांकुर शाखा का चयन करते समय, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि पेंसिल की मोटाई की शाखा प्रसार विधि के लिए अच्छी तरह से फिट होती है।
  • उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, उच्च सौर विकिरण से शीर्ष से कटे हुए मुख्य तने को सनबर्न से अघात पहुंचता है। इस से बचने के लिए मुख्य तने पर वाइटवॉशिंग करके रोका जा सकता है।