कटहल / मंकी जैक
वानस्पतिक नाम – आर्टोकार्पस हेटरोफिलस
कुल –मोरेसी
गुणसूत्र संख्या– 2n = 56 (Auto tetraploid)
उत्पति- भारत
फल प्रकार – सोरॉसिस (Multiple fruit)
खाने योग्य भाग – ब्रैक्ट्स/पेरियन्थ
महत्वपूर्ण बिन्दु
- वर्तमान सीजन की वृद्धि पर शीर्ष फलन (terminally) होता है।
- कौलीफ्लोरस (Cauliflorus) फलन होता है।
- कटहल में विविपरी (Vivipary) स्थिति मौजूद होती है।
- निष्कर्षण (extraction) के तुरंत बाद बीज बोया जाता है।
- बीजों को 25ppm NAA में 24 घंटे के लिए भिगो दें। जिससे इनके अंकुरण और अंकुर वृद्धि में सुधार होता है।
- इसमें 20% कार्बोहाइड्रेट होता है।
- इन्हे ‘पेक्टिन का अच्छा स्रोत’ माना जाता है।
- भारत में उगाया जाने वाला सबसे बड़ा फल है।
- ये ठंड और पाले को सहन नहीं कर सकते।
- अधिकतम उत्पादन असम में होता है।
किस्में
- गुलाबी
- चम्प
- हजारी
- रुद्राक्षी जैक
- सिंगापुर या सीलोन जैक।
- मुत्तम वरिका
- मंकी जैक
जलवायु
- कटहल उष्णकटिबंधीय पौधा है गर्म और आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से पनपता है।
- 1500 मीटर की ऊँचाई तक उगाया जाता है
- ठंड और पाले के प्रति संवेदनशील होता है।
मिट्टी
- गहरी, समृद्ध, अच्छी जल निकासी वाली जलोढ़ मिट्टी।
प्रवर्धन
- आमतौर पर गुटी (एयर लेयरिंग) द्वारा प्रवर्धित किया जाता है।
- एयर लेयरिंग के लिए उपयुक्त समय जुलाई से सितंबर का होता है।
रोपण
- 10m3 आकार के गड्ढे रोपण से 2 सप्ताह पहले खोदे जाते हैं जिससे मिट्टी जनित रोगजनकों को नष्ट करने के लिए सूर्य के संपर्क में आ सकें।
- रोपण दूरी 10 x 10 मीटर रखी जाती है।
- रोपण का आदर्श समय जून के मध्य से अगस्त के अंत तक है लेकिन सिंचाई सुविधाओं के साथ इसे नवंबर तक बढ़ाया जा सकता है
खाद और उर्वरक
- 210:160:1000 ग्राम/पेड़ NPK और 20-30 किलोग्राम FYM/पेड़ (पूर्ण फलन वाले पेड़)।
- FYM + P2O5+ K2O की पूरी और N की आधी मात्रा जनवरी के अंत में, और शेष आधी नाइट्रोजन फरवरी से मार्च में डालें।
सिंचाई
- भारत में कटहल की खेती वर्षा आधारित फसल के रूप में की जाती है। शुष्क और अर्धशुष्क क्षेत्रों में जहां वार्षिक वर्षा कम होती है वहां सिंचाई की आवश्यकता होती है।
इंटरकल्चर और इंटरक्रॉपिंग
- बाग के फर्श और पेड़ों के थमलों को बार-बार उथली गुड़ाई से खरपतवारों से मुक्त रखा जाना चाहिए, कुछ सब्जियों की खेती जैसे मूली, बैगन, मिर्च आदि से कुछ आय अर्जित की जा सकती है।
फूल और फल सेट
- फूल नवंबर के अंत से दिसंबर तक शुरू होते हैं और फरवरी तक जारी रहते हैं।
- यह एक मोनोसियस (monoecious) वृक्ष है। पुष्पक्रम एक स्पाइक है।
- नर पुष्पक्रम दोनों प्राथमिक या द्वितीयक शाखाओं और मूलवृन्त से उत्पन्न होते हैं, जबकि मादा स्पाइक मूलवृन्त (Rootstock) से निकलती है।
- छोटे पेड़ों में नर से मादा फूलों का अनुपात बहुत अधिक होता है।
तुड़ाई
- फल को उंगली से थपथपाने पर एक नीरस, खोखली ध्वनि उत्पन्न होती है।
- डंठल का आखिरी पत्ता पीला हो जाता है।
- फलों के काँटे अच्छी तरह विकसित और दूर दूर हो जाती है।
- एक सुगंधित गंध विकसित होती है।
- नर्म कटहल, जिसका उपयोग शाक के लिए किया जाता है, बीज के सख्त होने से पहले तोड़ा जाता है।
उपज
- प्रति वर्ष 250 से 300 फल।
- अलग-अलग फलों का वजन एक किलोग्राम से कम से लेकर 15-20 किलोग्राम तक होता है।
कीट
- प्ररोह एवं तना बेधक (डायफानिया कैकसलिस)
कैटरपिलर शाखाओं, कलियों और फलों में छेद कर देते हैं।
नियंत्रण
फूल आने पर कार्बेरिल 4 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।
- फल छेदक (ग्लाइफोड्स सीज़लिस)
लाल भूरे रंग के लार्वा फल में घुस जाते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं।
नियंत्रण
फूल आने पर कार्बेरिल 4 ग्राम प्रति लीटर की दर से छिड़काव करें।
रोग
- गुलाबी रोग (बोट्रीबेसिडियम साल्मोनिकलर)
- युवा काष्ठीय शाखाओं में मरने के लक्षण दिखाई देते हैं और पत्तियों के निचले हिस्से पर गुलाबी रंग का आवरण दिखाई देता है।
नियंत्रण
- कुछ स्वस्थ ऊतकों के साथ प्रभावित हिस्सों को काट दिया जाना चाहिए।
- कटे हुए सिरों को बोर्डो पेस्ट से ढक देना चाहिए।
- फूल और फल का झुलसना (बोट्रीटीस सिनेरिया और राइजोपस स्टोलोनिफ़र)
- रोग के आक्रमण से कटहल के युवा फल समय से पहले गिर जाते हैं।
नियंत्रण
- स्प्रे बेनोमाइल (04%)
- राइजोपस रोट (राइजोपस आर्टोकार्पी)
- रोगज़नक़ आमतौर पर नर पुष्पक्रम और छोटे फलों को संक्रमित करता है। सड़न डंठल के सिरे के पास शुरू होती है।
नियंत्रण
- डाइथेन एम-45 @ 0.2% और बाविस्टिन @ 0.05% 14 दिनों के अंतराल पर तीन बार छिड़काव करें।