Basic Horticulture

उद्यानिकी फसलों के लिए मिट्टी और जलवायु

मिट्टी और जलवायु दोनों प्रकृति के ऐसे अंग है जिनके बिना पौधों के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।जिस प्रकार मिट्टी पौधों को उगने के लिए सहारा प्रदान करती है वैसे ही जलवायु उन्हे बढ़ने के लिए अनुकूल वातावरणीय परिस्थितियाँ प्रदान करती है। अथवा ये कहा जा सकता है की पौधों को मुख्यत दो ही चीजों की आवश्यकता होती है एक मिट्टी और दूसरी जलवायु की। 

मिट्टी (Soil) :-

पृथ्वी की ऊपरी सतह पर मोटे, मध्यम और बारीक कार्बनिक अकार्बनिक मिश्रित कण जो पौधों की वृद्धि में सहायक होते हैं मृदा कहलते है। यह चटनों के अपक्षय (नष्ट होने से) से बनती है, इसमे Quartz, Feldspars, Micas, Hornblende, Calcite और Gypsum जैसे खनिज पदार्थ पाये जाते हैं।

चटनों का अपक्षय भौतिक, रसायनिक तथा जैविक क्रियाओं द्वारा होता हैं। भौतिक क्रियाए जैसे Oxidation, Reduction, Solution, Hydrolysis, Hydration and Carbonation (Acid action of carbonic acid) तथा जैविक कारक जैसे इंसान और जानवर हैं

मृदा के प्रकार (Type of soil)

  1. ज्लोड़ मिट्टी (Alluvial soil):-

इस प्रकार मिट्टी का निर्माण वर्षा ऋतु में नदियों द्वारा बहकर लाई गयी सिल्ट (गंद) से होता हैं, मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ कम परंतु पोटाश तथा चुना भरपूर होता हैं। यह मिट्टी सामान्य से लेकर थोड़ी क्षारीय होती हैं। इस प्रकार की मृदाओं में अमरूद, कटहल, जामुन तथा खिरनी का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता हैं। पुरानी Alluvial मृदाओं में CaCo3 के जमाव के कारण कठोर परत का निर्माण होता हैं जिसके कारण ऐसी मृदाओं में जल का धरातल में रिसाव (infiltration) कम होता हैं। उस पर परत बहुत कठोर होने के कारण नमकीन क्षारीय मृदाओ का निर्माण होता हैं। इस प्रकार की मृदाओ को ‘ऊसर’ तथा ‘रेह’ के नाम से भी जाना जाता हैं।  

  1. तराई मिट्टी (Tarai soils)

इस प्रकार की मृदाओं हिमालय पर्वत के आस पास के राज्यो जैसे: उतराखंड, बिहार और पश्चमी बंगाल में पाई जाती है। यह मृदा गहरी और उपजाऊ होती हैं। इसमें जल स्तर भी उच्च होता हैं। यह मृदा घासों के लिए उपयुक्त होती हैं फल वृक्षों जैसे: आम, लीची, संतरा आदि के लिए भी उतम रहती हैं।  

  1. शुष्क मिट्टी (Arid soil)

ये मिट्टी राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और गुजरात के उतरी हिस्से में पानी की कमी वाले क्षेत्रों में पाई जाती हैं। नमी की कमी के कारण इस क्षेत्र में झाड़ीदार, कांटेदार तथा अल्पकालिक पौधे उगते हैं। बालु का एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरण इस क्षेत्र की प्रमुख विशेषता हैं। जमीन में CaCo3 की कठोर परत होने के कारण ही ऐसे क्षेत्रों में फलवृक्षों को उगा पाना मुश्किल हैं। इस प्रकार की मृदाओ में घुलनशील लवणो की अधिकता होती हैं तथा मृदा pH 8.0 से 8.8 तक रहता हैं कार्बनिक पदार्थो की भी कमी रहती हैं इस प्रकार की मृदाओ में बेर, खंजूर, आवला, खेर, लासोड़ा, अंजीर, खेजड़ी आदि वृक्षो को उगाया जा सकता हैं।

  1. काली मिट्टी (Black soil)

काली मिट्टी समान्यत: महाराष्ट्र में पायी जाती हैं। जो की भारी और दुमट से चिकनी होती हैं तथा यह गीली होने पर चिपचिपी तथा सूखने के बाद कठोर हो जाती हैं। यह समान्य से हल्की क्षारीय जिसका pH 7.2 से 9.0 होता हैं। इस मिट्टी में नाइट्रोजन तथा कार्बनिक पदार्थो की कमी होती हैं। फलवृक्ष जैसे : नींबू वर्गीय, केला, चीकू और आम के लिए उत्तम होती हैं।

  1. लाल मिट्टी (Red soils)

यह मिट्टी Fe2O (आयरन ऑक्साइड) के कारण लाल दिखाई देती हैं। यह देश के हर राज्य में पायी जाती हैं इस मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी होती हैं लाल मिट्टी उथली होती हैं तथा clay भी कम मात्रा में होती हैं लाल मिट्टी की जल धारण क्षमता भी बहुत कम होती हैं। यह अम्लीय अथवा क्षारीय होती हैं इस मिट्टी में नारियल, सुपारी, काली मिर्च, आदि बहुत से फल और सब्जियां उगाई जा सकते हैं।

  1. लेटेराइट मिट्टी (Latorite soil)

यह मिट्टी रेतीली और छिद्रयुक्त होती हैं। इसमें कार्बनिक पदार्थ तथा पोषक तत्व कम मात्र में होते हैं परंतु एलुमिनियम, तथा आयरन आक्साइड (iron oxides) से भरपूर होती हैं। इस मिट्टी की भी जल धारण क्षमता कम होती हैं तथा pH भी कम होता हैं। इस प्रकार की मृदाओ में चाय, काफी, रबर, काजू आदि उगाये जा सकते हैं।

  1. दलदली मिट्टी (Marshy Soil)

दलदली मिट्टी अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में होती हैं तथा अम्लीय प्रकार की होती हैं। इस मिट्टी की अम्लीयता कार्बनिक पदार्थो के अवायुवीय स्थिति में अपघटन से निर्मित sulpharic acid के कारण होती हैं। वर्षा के दिनों में यह जलमगन रहती हैं यह रंग में काली और इसमें clay अधिक मात्रा में पायी जाती हैं  इस प्रकार की मृदाओ में एलुमिनियम तथा फेरस सल्फेट की अधिकता होती हैं ऐसी मृदाओं में Eugenia तथा syzygium जैसी प्रजातियाँ उगती हैं।

उद्यानिकी फसलों के लिए मृदा में नीचे दिये गये गुण होने चाहिए

  1. यह उपजाऊ और जल निकासी वाली होनी चाहिए।
  2. यह फलवृक्षों के लिए गहरी होनी चाहिए।
  3. इसमें जल स्तर अधिक से अधिक 4 मी. तथा और अधिक गहरा होना चाहिए.
  4. इसमें पोषक तत्वों तथा जल धारण करने की क्षमता होनी चाहिए।
  5. यह उदासीन होनी चाहिए तथा 6.5 से 7.5 के मध्य होना चाहिए।
  6. मिट्टी में कठोर परत, अधिक लवण तथा जल स्तर उच्च नहीं होना चाहिए।

जलवायु

यह एक बड़े क्षेत्र में विद्यमान मौसम की औसत स्थिति को दर्शाता है। तापमान, आर्द्रता, वर्षा, सौर विकिरण और पवन जलवायु के प्रमुख घटक हैं। जलवायु को निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता हैं

  1. शीतोष्ण जलवायु (Temperate climate)

ऐसे क्षेत्रों में यहाँ का तापमान सर्दियों में जमाव बिन्दु से नीचे पहुँच जाता हैं। पौधे कम  तापमान से होने वाले नुकसान से बचने के लिए पत्तियों को झाड़ देते हैं तथा पौधे अपनी आगामी वृद्धि के लिए chilling requirement को पुरा कर लेते हैं। ऐसे जलवायु क्षेत्रों में जमीन 3 से 5 महीने के लिए बर्फ से ढकी रहती हैं। गर्मियों में इन क्षेत्रों का तापमान 100 से 140 तथा नमी (आद्रता) 80 से 100% तक रहती हैं। ऐसे क्षेत्र समुन्द्र तल से 1800m से 3500m की ऊंचाई पर होते हैं। इस प्रकार की जलवायु में सेब, नाशपाती, आड़ु, आलूबुखारा, अखरोट, खुमानी जैसे फल। आलू, गोभी, जड़ वाली सब्जियाँ, मटर, सेलेरी, लेटुस, खुंभी जैसी सब्जियाँ तथा गुलाब, आर्किड, गेंदा आदि फूलों की खेती की जाती हैं।   

  1. उष्णकटिबंधीय जलवायु (Tropical Climate)

ऐसे जलवायु क्षेत्र जहां गर्मियों और सर्दियों में ज्यादा अंतर नहीं रहता हैं गर्म और आद्र गर्मीया ऐसी जलवायु की विशेष पहचान होती हैं। रात और दिन के तापमान में भी कोई विशेष अंतर नहीं होता हैं तथा आद्रता भी अधिक रहती हैं। औसत तापमान 220 डिग्री से 270 के मध्य रहता हैं। ऐसी जलवायु प्रदेश समुन्द्र तट से 300 से 900m की ऊंचाई पर पाए जाते हैं। समुन्द्र तटीय क्षेत्र इस श्रेणी में आते हैं आम, केला, पपीता, अनानास, कटहल जैसे फल, प्याज, मिर्च, टमाटर, शकरकंद, करीपत्ता, अदरक, कद्दू, तर, खीरा जैसी सब्जियाँ तथा राजनीगंधा, चमेली, मोगरा, ग्लैडीओलस जैसे फूलों की खेती की जाती हैं।

  1. उपोष्णकटिबंधीय जलवायु (Subtropical Climate)

गर्म और शुष्क गर्मीया तथा ठंडी ओर नम सर्दियाँ इस जलवायु की विशेषता हैं। ऐसी जलवायु में रात और दिन के तापमान में भी बहुत अंतर होता हैं। ऐसे जलवायु क्षेत्रों में वर्षा कम से मध्य होती हैं। गर्मियों में तापमान 350 से 400 और सर्दियों में 00 से 100 तक चला जाता हैं। तथा मानसून के समय आद्रता 100% तक होती हैं। ये क्षेत्र समुन्द्र तल से 900 से 1800m की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। नींबू वर्गीय फल, फालसा, अंजीर, अमरूद, अनार जैसे फल। मटर, कद्दू वर्गीय सब्जियाँ, टमाटर, बेंगन, मिर्च, फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी जैसी सब्जियाँ तथा गुलाब, गुलदाउदी, राजनीगंदा, मोगरा जैसे फूल तथा बीजीय मासाले इस क्षेत्र में उगाये जाते हैं।

Different types of Horticulturally potential zone of the country

  1. Temperate Zone: – जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उतराखंड के भाग, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड, नीलगिरी और तमिलनाडू के पालनी पर्वत।
  2. North-Western Subtropical Zone: – राजस्थान, पंजाब, हरयाणा, उत्तर प्रदेश के भाग, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ इसके अंतर्गत गिने जाते हैं।
  3. North Eastern Sub-tropical Zone: – बिहार, झारखंड, असम, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश के भाग पश्चमी बंगाल।
  4. Central Tropical Zone: मध्य प्रदेश के भाग, छतीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, पश्चमी बंगाल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक इसके अंतर्गत जुडे हुए हैं।
  5. Southern Tropical Zone: – कर्नाटक के भाग, आंध्र प्रदेश, तमिल नाडु और केरल इसके अंतर्गत आते हैं।
  6. Coastal / Tropical Zone:- महाराष्ट्र के तटीय भाग, केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, तमिल नाडु का कुछ भाग, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मिज़ोरम, समुद्र के साथ वाले गुजरात के भाग, अंडमान और निकोबार।

पौधों की वृद्धि पर जलवायु कारकों का प्रभाव (Influence of climate factors on the growth of plants)

तापमान (Temperature)- तापमान बहुत ही महत्वपूर्ण कारक हैं जो वृद्धि को प्रभावित करता हैं कम और ज्यादा दोनों का ही पौधों की वृद्धि को प्रभावित करते हैं चौडे पत्ते वाले सदाबहार पौधे कम तापमान के कारण प्रभावित होते हैं। ऐसे पौधे अगर तापमान 5 डिग्री से कम रहता हैं तो मर सकते हैं। जबकि पतझड़ी पौधे ऐसे मौसम में अपनी पत्तीय गिरा कर अपना बचाव कर लेते हैं।

बहुत से शीतोष्ण पौधों को पुष्पन के लिए कुछ घंटे 70 सेल्सियस या कम तापमान के  आवश्यकता होते हैं जिसे उन पौधों की chilling requirment कहते हैं अगर शीतोष्ण वाले पौधों को 400 सेल्सियस तापमान मिले तो उनकी पत्तियाँ झुलस जायेगी तथा पौधों में पुष्पन नहीं होता हैं। सामान्यत: पौधों को 230 से 270 सेल्सियस तापमान की आवश्यकता रहती हैं।  

आद्रता (Humidity):- आद्रता के कारण पौधों में गुणात्मक वृद्धि होती हैं खरीफ मौसम के पौधे व सब्जियाँ अधिक आद्रता के कारण ही वृद्धि करते हैं। फलो का रंग, कुल घुलनशील विलायक (TSS) शर्करा – अम्ल का अनुपात कम आद्रता पर अच्छा होता हैं। संतरे का छिलका पतला और उसमें रस अधिक आद्रता पर अधिक होता हैं। अधिक आद्रता के कारण पौधों में बीमारियों का अधिक प्रकोप होता हैं। अद्रता के कम और अधिक होने से फल फट जाते हैं।

हवा (Wind):- हवा की गति और तापमान दोनों ही पौधों को प्रभावित करते हैं। गर्म हवा के कारण पत्तियाँ जुलस जाती हैं तथा अधिक तेज गति से हवा के बहाव के कारण फल जड़ जाते हैं पौधे उखड़ जाते हैं अथवा उनकी टहनियाँ टूट जाती हैं परागण करी कीट भाग जाते हैं जिससे फूलों का परागण नहीं हो पाता हैं तथा उपज कम मिलती हैं।

बारिश (Rainfall):- बारिश पौधों की वृद्धि तथा उत्पादन के लिए बहुत आवश्यक होती हैं। परंतु परागण के समय बरसात से पराग कण धुल जाते हैं और उत्पादन कम हो जाता हैं।

सौर विकिरण (Solar radiation) :- सौर विकिरण पौधों में ऊर्जा का स्त्रोत हैं। पौधे सौर विकिरणों का उपयोग कर अपना भोजन बनाते हैं जो पौधे के प्रत्येक भाग में पहुँच कर वृद्धि करता हैं इसी कारण पौधों के जो भाग दक्षिणी दिशा की ओर होते हैं उस तरफ अधिक फलन होता हैं।

Heat unit

पौधे Heat unit का उपयोग अपने वृद्धि और विकास में करते हैं उद्यान विज्ञान में Heat unit का उपयोग समान्य रूप से फलों की परिपक्वता के निर्धारण में किया जाता हैं। फल वृक्षों के द्वारा कितने डिग्री Heat unit का उपयोग कर लिया गया हैं इसी के अनुसार फलों की परिपक्वता का निर्धारण कर लिया जाता हैं। पौधों की एक विशेष अवस्था में एक आधार तापमान के ऊपर के तापमान को गिन लिया जाता हैं। तापमान की वार्षिक अथवा मासिक गणना की जाती हैं। सामान्यत: 10 सेल्सियस तापमान को आधार तापमान माना जाता हैं। Heat unit की गणना की degree C days अथवा degree days होती हैं। गणना निम्न प्रकार से की जाती हैं –

हीट यूनिट, Degree days =  (M – 10) X N

यहाँ,  M-   महीने का औसत तापमान (Mean monthly temperature)

     10-   आधार तापमान (Base temperature)

     N-    उसी महीने में दिनों की संख्या (Number of days in a particular month)

उदाहरण:- मई महीने की हीट यूनिट की गणना करना

महीने का औसत तापमान  

दिनांक (मई के महीने की)

दिन का औसत तापमान

1/5/2020

30

2/5/2020

32

3/5/2020

32

4/5/2020

33

5/5/2020

32

6/5/2020

36

7/5/2020

37

8/5/2020

35

9/5/2020

36

10/5/2020

38

11/5/2020

39

12/5/2020

39

13/5/2020

41

14/5/2020

40

15/5/2020

39

16/5/2020

38

17/5/2020

39

18/5/2020

40

19/5/2020

40

20/5/2020

42

21/5/2020

42

22/5/2020

41

23/5/2020

40

24/5/2020

39

25/5/2020

38

26/5/2020

41

27/5/2020

42

28/5/2020

40

29/5/2020

39

30/5/2020

39

31/5/2020

40

कुल दिन  31

तापमान का योग –  11020C

   

Heat Unit =  (35.54-10) X 31

                    =   25.54 X 31

                     = 791.74 Degree Days