Vegetable Science

टमाटर

वानस्पतिक नाम : लाइकोपर्सिकॉन एस्कुलेंटम Mill

कुल: सोलेनेसी

गुणसूत्र संख्या: 2n = 24

जन्म स्थल: पेरू या मेक्सिको

महत्व पूर्ण बिन्दु 

  • टमाटर विश्व की नंबर एक processing सब्जी है
  • टमाटर के puree और paste की अन्तराष्ट्रीय मार्केट में बहुत मांग है।
  • टमाटर का लाल रंग लईकोपिन (Lycopene) के कारण होता है यह 21-240 C तापमान पर सर्वाधिक होता है और 270 C तापमान पर तेजी से कम होने लगता है ।
  • टमाटर में 33% संकर किस्मे बोई जाती है जो की दूसरी सब्जियों की तुलना में बहुत अधिक है ।
  • काँट छाँट और संधाई (pruning and training) केवल indeterminate किस्मों में की जाती है ।
  • पंजाब में बसंत और गर्मी (spring summer) के मौसम की फसल ही ली जाती है क्योंकि दूसरे मौसम में (सर्दी) में पत्ती मरोड़ विषाणु (leaf curl virus) का अधिक प्रकोप रहता है ।

क्षेत्र और उत्पादन (Area and production)

Sr.no.

राज्य

2016-17

2017-18

क्षेत्र

उत्पादन

क्षेत्र

उत्पादन

1

आंध्र प्रदेश

49.79

4481.01

61.67

2744.32

2

छतीसगढ़ 

62.33

1082.34

63.29

1087.33

3

गुजरात 

48.76

1411.85

46.61

1357.52

4

कर्नाटक

60.45

1916.86

64.25

2081.59

5

मध्य प्रदेश 

95.40

2719.57

84.53

2419.28

6

महाराष्ट्र 

50.71

1124.89

45.50

1086.56

7

ओडिसा

90.99

1311.21

91.01

1312.07

8

राजस्थान 

20.37

90.52

18.12

88.73

9

तेलंगाना

37.97

520.47

41.48

1171.50

10

वेस्ट बंगाल 

57.35

1233.03

57.46

1265.25

 

अन्य 

222.58

4075.71

215.26

5145.18

 

कुल 

796.86

20708.43

789.15

19759.32

Source: Horticulture Statistics Division, Department of Agriculture, Coopn & Farmers Welfare.

Economic importance and use

  • टमाटर छोटे किसानों के लिए आमदनी का अच्छा स्त्रोत है । और इस मे बहुत से खनिज लवण और ऑर्गैनिक ऐसिड पाए जाते है ।
  • पूरे पके फल मे कुल शर्करा 2.5% तथा एस्कॉर्बिक ऐसिड 16 से 65 mg / 100 g पाया जाता है । फल मे जल 94.1 g , प्रोटीन 1.0 g, वसा 0.3g 4.0 g कार्बोहाइड्रट, 0.6 g रेशे, विटामिन A 1100 IU, विटामिन B 20 mg, विटामिन C 23mg मेलिक ऐसिड 150 mg, सिट्रिक ऐसिड 390 mg ऑक्सलिक ऐसिड 3.5 mg, पोटेशियम 268 mg और फॉसफोर्स 27 mg पाया जाता है।
  • टमाटर से बहुत से उत्पाद जैसे चटनी, पयुरि, सॉस, सिरप, केचप यदि तैयार किए जाते है कभी कभी इसे ‘गरीब का संतरा” (Poor Man’s orange) की भी संज्ञा दी जाती है इस को औषधि के रूप मे भी उपयोग किया जाता है जैसे कब्ज, अपच अस्थमा और खून साफ करने के लिए।
  • टमाटर का लाल रंग लाइकॉपिन के तथा पीला कारोटीन के कारण होता है ।

किस्मे (varieties)

Growth के अनुसार टमाटर की किस्मों के दो प्रकार होते है

1. निर्धारित (Determinate) प्रकार:

लगभग हर इंटर्नोड में पुष्पक्रम होता है जब तक कि टर्मिनल नहीं बनता हैं और इस बिंदु पर बढ़ाव बंद हो जाता है, दूसरे शब्दों में, इसे स्व-टॉपिंग के रूप में परिभाषित किया जा सकता है और मुख्य स्टेम एक फूल क्लस्टर के साथ समाप्त होता है।

2. अनिर्धारित (Indeterminate) प्रकार:            

पुष्पक्रम गुच्छ हर तीसरे इंटर्नोड पर होता है और मुख्य अक्ष अनिश्चित काल तक बढ़ता रहता है। जैसे

महत्वपूर्ण किस्में/संकर

(A) पुर:स्थापित

  • रोमा, सुइओक्स, बेस्ट ऑफ ऑल, टिप टॉप, लैबोनिटा, मार्वल, मनी मेकर, अगेती

(B) चयन

  • इम्प्रूवड मेरुति, सोनाली, पंत बहार, अर्का विकास, अर्का सौरभ

(C) संकर

पूसा अर्ली ड्वॉर्फ: इम्प्रूव्ड मेरुती X रेड क्लाउड
पूसा रूबी: सिओक्स X इम्प्रूव्ड मेरुती
पूसा गौरव: ग्लैमर X वॉच
मार्गलोब: मार्वल X ग्लोब

अन्य संकर 

पूसा रेड प्लम 

स्वीट 72

पूसा शीतल 

हिसार लालिमा 

हिसार ललित 

हिसार अरुण 

पंजाब छुहारा

पूसा उपहार 

अर्का विशाल 

अर्का वर्धन 

अर्का अभिजीत 

 

राजेशरी 

पूसा दिव्या  ( Male Sterile line का उपयोग करके विकसित किया गया)

 

निजी क्षेत्र हाइब्रिड: नवीन, अविनाश, मीनाक्षी, मनीषा, कृष्णा

निजी संस्था द्वारा विकसित प्रजातियाँ

माहिको बीज: एमटीएच 4, सदाबहार, गुलमोहर।

नोवार्टिस: अविनाश 2. उपज 75 टन/हेक्टेयर;

बेजो शीतल प्रा. लिमिटेड- मीनाक्षी, टाल्स्टोई।

(D) उत्परिवर्तन : एस-12, मारुथन, पीकेएम-1, पूसा लाल मेरुती 

(E) अनिर्धारित (Indeterminate) प्रकार:

पूसा रूबी

अर्का सौरभ 

अर्का विकास 

पंत बहार 

बेस्ट ऑफ आल

सिओक्स

पूसा दिव्या

पूसा उपहार

नरेंद्र टोमॅटो

पूसा शीतल: निम्न तापमान वाला क्षेत्र
पूसा एच-1: उच्च तापमान वाले क्षेत्र के लिए
पूसा सदाबहार: निम्न एवं उच्च तापमान के लिए उपयुक्त
हिसार अरुण: अत्यधिक अगेती किस्म
फ्लेवर-सेवर: जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके विकसित किया गया
अर्का विकास: सूखे की स्थिति के लिए उपयुक्त
पत्ती मोड़न प्रतिरोधी किस्में: हिसार गौरव, हिसार अनमोल
पूसा रोहिणी: हाल ही में जारी की गई किस्म
Sel.- 120: प्रथम जड़ गांठ प्रतिरोधी किस्म

विभिन्न प्रयोजनों के लिए किस्में:

स्थानीय बाजार के लिए किस्में : पूसा अर्ली, ड्वार्फ, पूसा रूबी, पूसा 120, पंत टी-3, अर्का विकास, अर्का सौरभ, सीओ-3, पंजाब केसरी, पंत बहार

दूर बाजार के लिए किस्में : पूसा गौरव, रोमा, पंजाब छुहारा, पूसा उपहार।

प्रसंस्करण के लिए किस्में :पूसा गौरव, रौसा, पंजाब छुहारा, पूसा उपहार, अर्का सौरभ।

अजैविक तनावों के प्रति प्रतिरोधी किस्में: पूसा शीतल-कम तापमान; पूसा संकर 1-उच्च तापमान; पूसा सदाबहार- उच्च एवं निम्न तापमान।.

 जलवायु और मिट्टी

टमाटर एक गर्म मौसम की फसल है। यह ठंड सहन नहीं कर सकती तथा इस के लिए भूमि अच्छे जल निकास वाली होनी चाहिए। तापमान 20240C उपयुक्त रहता है  मतलब 160C से नीचे और 270C से ऊपर का तापमान अवांछनीय है। लाइकोपीन 21-240C पर सबसे अधिक तथा, इस वर्णक का उत्पादन 270C पर अधिक तेजी से गिरता है। टमाटर को विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में उगाया जा सकता है, लेकिन अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में काफी अच्छी उपज प्राप्त होती है, जो कि उचित जल धारण क्षमता के साथ जैविक पदार्थों से भरपूर होती है। शुरुआती फसल के लिए, रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है, हालांकि, अधिक उपज के लिए जैविक पदार्थों से भरपूर भारी मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है। सबसे अच्छी मिट्टी पीएच 6-7 है।

मौसम

  • मैदानी इलाकों में बीज वर्ष के दौरान तीन बार बोया जाता है।

  1) वर्षा-शरद ऋतु की फसल के लिए: बीज जून और जुलाई के महीने में बोए जाते हैं।

   2) शरद ऋतु-सर्दियों की फसल के लिए: बीज सितंबर-अक्टूबर के महीने में बोए जाते हैं।

   3) वसंत-गर्मियों की फसल के लिए: बीज जनवरी-फरवरी के महीने में बोए जाते हैं।

  • पहाड़ियों में बीज बोना स्थान की ऊंचाई पर निर्भर करता है। निचली पहाड़ियों पर, बीज फरवरी-अप्रैल में बोए जाते हैं जबकि मार्च और अप्रैल के महीनों में ऊंची पहाड़ियों पर।

बीज दर

बीज की दर बीज की अंकुरण क्षमता पर निर्भर करती है। देशी किस्मों के 300-400 g तथा संकर किस्मों के 100-150 g बीज एक हेक्टर की बुआई के लिए पर्याप्त रहते है

नर्सरी

एक हेक्टेयर के लिए पौध उगाने के लिए लगभग 200 मी 2 क्षेत्र पर्याप्त होगा। आमतौर पर नर्सरी बेड 7.5 मीटर लंबी, 1-1.2 मीटर चौड़ाई और 10-15 सेमी ऊंचाई के आकार में तैयार किए जाते हैं। अच्छी तरह से विघटित खेत की खाद को 3 किलोग्राम / मी 2 की दर से बेड की शीर्ष मिट्टी में ठीक से मिलाया जाता है। बीजों को बोने से कम से कम 10 दिन पहले प्रति बेड़ 0.5 किलोग्राम NPK 15:15:15 प्रति बेड के उर्वरक मिश्रण को  मिट्टी में मिलाया जाता है।

स्वस्थ पौध पैदा करने  के लिए, बीज को कैप्टान या थीरम @ 2g / kg बीज के साथ बोने से पहले उपचारित किया जाना चाहिए । बीज को छिड़ककर या पंक्ति में बोया जाता है, पंक्तियों के बीच 7.5 सेमी की दूरी रखनी चाहिए। बुवाई के बाद, बेड को सूखी घास या खाद की एक पतली परत के साथ कवर किया जाता है, इसके बाद बेड को वॉटर  कैन से सींचा जाता है। शाम को रोजाना हल्के पानी की आवश्यकता होती है। हर हफ्ते, यदि आवश्यक हो, तो एक कवकनाशी जैसे कि मैनकोज़ेब या Difolation 0.25% का छिड़काव किया जाना चाहिए ताकि damping off को कम किया जा सके। रोपाई के 4 से 6 सप्ताह बाद रोपाई के लिए पौध तैयार हो जाती है ।

आज कल विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक अंकुर ट्रे (प्रो-ट्रे) का उपयोग पौध उगाने के लिए किया जाता है। ये ट्रे पौध के विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करती हैं।

प्रो-ट्रे में पौध उगाने के लाभ (Advantages of raising seedlings in pro-trays):

  1. यूनिफॉर्म, जोरदार और स्वस्थ पौध को बेहतर विकास और उपज के लिए उठाया जा सकता है।
  2. बीज दर में कटौती कर खेती की लागत को कम किया जा सकता है।
  3. पौध को biotic and abiotic stresses के खिलाफ सुविधाजनक सुरक्षा के माध्यम से अनुकूल परिस्थितियों को प्रदान किया जा सकता है।
  4. मुख्य क्षेत्र की तैयारी के लिए कुशल समय प्रबंधन। (Efficient time management for preparation of main field.)

खेत की तैयारी (Preparation of field):

खेत को पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई की जाती है और उसके बाद देशी हल या हैरो से 4-5 जुताई की जाती है। जुताई के बाद लेवलिंग की जानी चाहिए और मिट्टी को बारीक बना लेना चाहिए और बेहतर जल निकासी की सुविधा भी प्रदान करनी चाहिए। मिट्टी की तैयारी के समय, जमीन के स्तर से रोपण की क्यारियाँ को ऊपर उठा कर बनाने से बरसात के मौसम में जल निकासी की सुविधा होती है।

रोपाई (Transplanting)

पौध को 4-5 दिनों तक पानी रोक कर रोपाई से पहले कड़ा (Hard) कर लेना चाहिए जिससे  पौध मे उपलब्ध नमी 20 प्रतिशत तक कम हो सके। रोपाई के समय सिंचाई पानी में 4000 पीपीएम NaCl मिलाकर या 200 पीपीएम साइक्लोसेल + ZnSO4 (0.25%) + 25 मिमी प्रोलिन के स्प्रे से भी हार्डनिंग (Hardening) की जा सकती है। टमाटर के पौधों की रोपाई फ्लैट बेड पर या मेड़ों के किनारो पर की जा सकती हैं। प्रारंभिक चरण में, रोपाई को मेड़ों (ridge) के किनारे पर प्रत्यारोपित किया जाता है और बाद में रिज के बीच में पौधे को रखने के लिए पौधे के साथ मिट्टी चड़ाई (earthing up) जाती है।

टमाटर में, पौधे की दूरी किस्म पौधे की growth habit तथा उपयोग के आधार पर रखी जाती है कम पौध दूरी से, उपज अधिक मिलती है लेकिन यह फल की गुणवत्ता को कम करती है। विशेष रूप से आकार में कमी और कीटों और रोगों की अधिक संभवना रहती है। टमाटर मे अलग-अलग स्पेसिंग का रखी जाती है जैसे कि 60cmx45cm, 75cmx60cm और 75cmx75cm फ्लैट और उठे हुए बेड पर। कुछ क्षेत्रों में 100cmx60cm दूरी भी रखी जाती है 35,000पौधे / हेक्टेयर जिनसे 40 टन / हेक्टेयर के उत्पादन भी मिलता है।

पोषण (Nutrition)

खेत में पोषक तत्वों को देने की मात्रा कई कारकों पर निर्भर करती है जैसे कि किस्म, मिट्टी और जलवायु, सिंचाई और मौसम। वसंत की गर्मियों में उगाई जाने वाली फसल को सर्दियों के मौसम की फसल की तुलना में अधिक नाइट्रोजन की आवश्यकता होगी। प्रारंभिक परिपक्व किस्मों को लंबी अवधि की तुलना में कम नाइट्रोजन की आवश्यकता होगी। नाइट्रोजन की पर्याप्त आपूर्ति, फलों का आकार, फलों की गुणवत्ता, रंग और स्वाद को बनाए रखती है । अतिरिक्त नाइट्रोजन से भी एसिडिटी बढ़ती है। पूरे जड़ क्षेत्र (root zone) में फॉस्फोरस का उच्च स्तर तेजी से जड़ के विकास और पानी तथा अन्य पोषक तत्वों के बेहतर उपयोग (utilization) के लिए आवश्यक है। विकास, उपज और गुणवत्ता के लिए पोटेशियम की पर्याप्त मात्रा की आवश्यकता होती है।

विभिन्न राज्यों के लिए उर्वरकों की अनुशंसित खुराक नीचे दी गई है

Sr. No.

Place

Nitrogen (kg/ha)

Phosphorous (kg/ha)

Potassium (kg/ha)

FYM (t/ha)

1

New Delhi

60

60

0

25

2

Coimbatore

100

80

50

25

3

Bangalore

115

104

64

25

अच्छी तरह से सड़ा हुई  38 टन गोबर की खाद और 250 किलोग्राम NPK प्रत्येक प्रति हेक्टेयर संकर के लिए अनुशंसित खुराक है। नाइट्रोजन की आधी खुराक और फास्फोरस और पोटेशियम की पूरी खुराक बेसल डोज (Basal dose) के रूप में देनी, जबकि नाइट्रोजन की आधी खुराक रोपाई के 25-30 दिनों के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देनी चाहिए। Zn, Cu और B के अनुप्रयोग से उपज और गुणवत्ता, फलों की संख्या में काफी वृद्धि होती है। फलों की पैदावार और अच्छी गुणवत्ता के लिए 20-30 किलोग्राम बोरेक्स और 0.5% Zn का उपयोग लाभदायक है।

सिंचाई (Irrigation)

टमाटर के पौधों को अपनी विकास अवधि के दौरान पर्याप्त नमी की आवश्यकता होती है। रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई की आवश्यकता होती है। रोपाई के समय और फलों के सेट से पहले पानी की बहुत अधिक मात्रा हानिकारक पाई गई है। गर्मी के दौरान 3-4 दिनों के अंतराल पर और सर्दियों के दौरान 10-15 दिनों के अंतराल पर मिट्टी को गीला बनाए रखने के लिए फसलों की सिंचाई करें। सर्दियों के दौरान, फल ​​पकने के समय पौधों की सिंचाई नहीं की जाती है। सूखे के एक लंबे दौर बाद अचानक भारी सिंचाई फलों के फटने का कारण बन सकती है। भारत में टमाटर की फसल की सिंचाई के लिए कुंड सिंचाई विधि का सबसे अधिक उपयोग किया जाता है। टपका विधी (Drip Irrigation) से टमाटर की फसल की सिंचाई करने से उपज में 50 प्रतिशत की वृद्धि होती है और पानी की बचत 30 प्रतिशत तक होती है। आजकल स्प्रिंकलर सिंचाई भी लोकप्रिय हो रही है जो अधिक किफायती पाई जाती है।

खरपतवार नियंत्रण (weed control)

खरपतवार नियंत्रण के लिए हाथ से निराई गुड़ाई रोपाई के बाद पहले और तीसरे पखवाड़े मे करनी चाहिए तथा इसी दौरान एक बार earthing up करने से खरपतवारो को नियंत्रित किया जा सकता है। मेट्रीबुज़िन (metribuzin) जैसे पूर्व उद्भव (pre emergence) हर्बिसाइड्स का अनुप्रयोग 0.35 किलोग्राम / हेक्टेयर, फ्लुक्लोरलीन 1.25 किलोग्राम / हेक्टेयर खरपतवार को नियंत्रित करता है और टमाटर की उपज को बढ़ाता है। हाल ही में रोपाई के तीन दिन बाद पूर्व उद्भव अनुप्रयोग के रूप में पेन्डीमिथालिन @ 1.0 किग्रा / हे का उपयोग बहुत प्रभावी पाया गया।

सहारा देना (Stacking)

Indeterminate किस्मों के पौधों को लकड़ी की छड़ें / पॉलीथीन धागे के साथ सहारा देने से उपज और गुणवत्ता में सुधार होता है। स्टेकिंग से न केवल पैदावार बढ़ती है और इसकी गुणवत्ता में सुधार होता है बल्कि यह फंगल (Fungal) रोगों द्वारा संक्रमण को भी कम करता है

वृद्धि नियामकों और रसायनों का उपयोग (Use of growth regulators and chemicals)

टमाटर में पादप वृद्धि नियामकों का उपयोग अगेती पैदावार, गुणवत्ता, ठंड और उच्च तापमान और fruit setting और TLCV (टमाटर पत्ता कर्ल वायरस) के प्रतिरोध को विकसित करने के लिए लाभकारी पाया गया है। ग्रोथ रेगुलेटर रूट ग्रोथ को एक्टिव करते हैं, Fruit setting तथा उपज को बढ़ाते हैं। वे भौतिक परिपक्वता और फलों की बेहतर गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।

विभिन्न प्रयोजनों के लिए अनुशंसित विभिन्न विकास नियामक पदार्थों को तालिका में संक्षेपित किया गया है

रसायन

सामान्य नाम 

मात्रा  (mg/litre)

प्रभाव 

2,क्लोरोइथाइल फोस्पोनिक एसिड

एथेफ़ोन

200-500 पूरे पौधे पर छिड़काव

फूल लगने की क्रिया, बेहतर जड़ों और पौधों की स्थापना 

2, क्लोरोइथाइल ट्राइमिथाइल अमोनियम क्लोराइड

साइकोसेल

500-100

फूल की कली, वर्णक को उत्तेजित करती है और फल setting को बढ़ाती है 

2,4 डाइक्लोरोफेनोक्सी एसिटिक एसिड

2,4-D

2-5 बीज उपचार, पूरे पौधे पर स्प्रे

अगेतापन, अधिक फलन, बीज रहितता 

3 इंडोल ब्यूटिरिक एसिड

IBA

50-100

फल अधिक लगना  

3 इंडोल एसिटिक एसिड

IAA

पर्णीय छिड़काव 

फल आकार तथा उपज में वर्द्धि 

नेफ़थलीन एसिटिक एसिड

NAA

छिड़काव

अधिक फलन तथा उपज 

पैराक्लोरोफेनोक्सी एसिटिक एसिड

PCPA

50 पर्णीय छिड़काव 

प्रतिकूल मौसम में अधिक फलन 

6-4 हाइड्रोक्सी मिथाइल 8 मिथाइल जिबरेलिन

GA

50-100 पर्णीय छिड़काव

शाखाओ की लंबाई में वर्द्धि तथा अधिक उपज 

 पलवार

मल्चीइंग  का उपयोग तापमान को बढ़ाने या कम करने के लिए तथा खरपतवार के विकास को रोकने के लिए किया जाता है और मिट्टी की नमी को संरक्षित करता है। गर्मी के मौसम में पुआल जैसे कार्बनिक मल्च मिट्टी के तापमान को कम कर सकते हैं, हालांकि, प्लास्टिक का इस्तेमाल सर्दियों के मौसम में मिट्टी के तापमान को बढ़ाने के लिए किया जाता है, जिससे टमाटर की अच्छी वृद्धि, फूल, फलन और गुणवत्ता को बड़ा देती है।

छँटाई 

अनिर्धारी (Indeterminate) टमाटर की किस्मों में काँट छाँट और संधाई की जाती है। प्रूनिंग पौधों के अवांछित विकास को हटाने, फलों के आकार और अन्य गुणों में सुधार करता है। प्रुनिंग शीर्ष प्रमुखता (apical dominance) को खत्म करता है, Indeterminate टमाटर में छंटाई के अलावा, संधाई से शुरुआती और कुल उपज और गुणवत्ता बढ़ाया जाता है। पौधों को तारों और बांस की खपचियों से सांधा जाता है ।

तुड़ाई और उपज (Harvesting and yield)

Indeterminate किस्मों को समान्यत 70-100 दिन बाद तोड़ना प्रारंभ करते है जबकि determinate को जलवायुवीय परस्थितियों के अनुसार लगभग 70 दिन बाद तोड़ा जाता है । उपयोग के आधार पर फलों की तुड़ाई निम्न अवस्थाओ पर की जाती है ।

Green stage:

पूरे लाल होने के एक पखवाड़ा पहले फलों को तोड़ा जाता है जब फल अपना विकास पूरा कर लेते है परन्तु हरे रंग के होते है और पकने के बाद समान्य रंग ले लेते है । इस अवस्था में फलों की तुड़ाई दूर मार्केट में निर्यात करने के लिए की जाती है ।

Pink stage:

इस अवस्था में फल के निचले क्षेत्र में हल्का लाल रंग दिखाई देने लग चुका होता है और फल हल्के लाल दिखाई देते है । इस अवस्था में फल लोकल मार्केट के लिए तोड़े जाते है ।

Ripe stage:

इस अवस्था में फल पूरा लाल रंग ले लेते है परन्तु अभी तक कठोर होते है इन्हे घर पर खाने के लिए उपयोग किया जाता है ।

Full ripe stage:

इस अवस्था में फल पूरा रंग ले लेते है तथा मुलायम होना शुरू कर देते है इस अवस्था के फल प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज़ के लिए उपयुक्त रहते है ।

फल आम तौर पर गर्मियों में 4-5 दिनों के अंतराल पर तोड़े जाते हैं जबकि सर्दियों में फल साप्ताहिक अंतराल तोड़े जाते हैं। उपज किस्मों या मौसम के अनुसार बहुत भिन्न होती है। खुले परागण (open pollinated) वाली किस्मों की औसत उपज पर 20-25 टन / हेक्टेयर तक होती है। सामान्य परिस्थितियों में संकर किस्मों की पैदावार 50t / ha या इससे अधिक हो सकती है।

 कीट प्रबंधन (Pest Management)

1. टमाटर फल कीड़ा (हेलिओथिस आर्मिजेरा):- अंडे से निकलने के बाद सूँडी पत्तियों तथा दूसरे वानस्पतिक भागों को नुकसान पहुँचती है और फल तक पहुँच कर फल में छेद कर देती है । यह कीट अक्तूबर से मार्च तक नुकसान पहुंचता है

रोकथाम (Control)

  • प्रभावित फलों को इककठा कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • 5-7 दिनों के अंतराल पर Sevin का छिड़काव करे।
  • Baccillus thuringiensis का उपयोग किया जा सकता है ।

2. जैसिड (अमरास्का बिगुतुला):जेसीड पत्तियों और दूसरे कोमल भागों से रस चूस कर नुकसान पहुंचता है

रोकथाम 

  • इस कीट की रोकथाम के लिए 0.02% पेराथियान (Parathion) का छिड़काव करना चाहिए।   

3. तम्बाकू कैटरपिलर (स्पोडोप्टेरा लिटोरेलिस): सूँडी रात के समय कोमल पत्तों शाखाओं तथा फलों को खा कर नुकसान पहुँचती है ।

रोकथाम 

  • नुवान 100 का 1 ml प्रति 2 लीटर पानी मे घोल बना कर छिड़कब करे अथवा एन्डोसल्फान 0.05%का छिड़काव भी प्रभावी रहता है

 

बीमारी प्रबंधन (Diseases Management)

1. आद्र गलन (पाइथियम या राइजोक्टोनिया स्पीशीज़ या फाइटोपथोरा स्पीशीज़): समान्यत नर्सरी के अंदर पौध अधिक प्रभावित होती है पौध का तना collor क्षेत्र से गल जाता है और पौधा क्यारी मे गिर जाता है। और मर जाता है ।

रोकथाम

  • नर्सरी की क्यारी की मिट्टी को फॉर्मेलिन या किसी कापर कवक नाशी से निरजमीकर्ण (Sterilization) करने के उपरांत बीज बोने चाहिय।
  • बीज बोने से पूर्व बीजों का बीजोउपचार सेरेसन अथवा अगरोसन से करना चाहिए।

2. फ्यूसेरियम विल्ट (फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम): सर्वप्रथम पौधे की निचली पत्तियां पीली पड़ जाती है और बाद मे पौधा मुरझा जाता है और अंत मे मर जाता है।

रोकथाम 

  • Crop rotation अपनाना चाहिए अथवा फसल अदल-बदल कर बोनी चाहिए।
  • रोगरोधी किस्मे बोनी चाहिए।

3. अर्ली ब्लाइट (अल्टरनेरिया सोलानी): प्रभवित पौधे की पत्तियों और कच्चे फलों पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते है अधिक प्रकोप होने पर फल गिरने शुरू हो जाते है और पूरा पौधा सुखना शुरू हो जाता है।

रोकथाम 

  • बीज बोने से पूर्व बीजों का बीजोउपचार सेरेसन अथवा अगरोसन से करना चाहिए।
  • बोर्डोंक्स मिक्सर का छिड़काव करना चाहिए ।

 4. लेट ब्लाइट (फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टैन्स): गहरे और पानी से लथपथ धब्बे पत्तियों और तने पर दिखाई देते हैं फल भी प्रभावित होते है फरबरी –मार्च मे बरसात से बीमारी अधिक नुकसान करती है ।

रोकथाम

  • डाइथेन z 78 का छिड़काव करे।
  • अथवा कापर कवक नाशी का छिड़काव प्रभावी रहता है ।

5. बैक्टीरियल विल्ट (स्यूडोमोनास सोलानेसीरम): पौधे की पुरानी पत्तियां गिरने लग जाती है और पौधा मुरझा जाता है । जड़ को काट कर देखने पर पूरा जाईलम भूरा अथवा काला दिखाई देता है ।

रोकथाम 

  • रोग रोधी किस्मे उगानी चाहिए।
  • 500C गरम पानी से 25 मिनट तक बीजों को उपचारित कर बोना चाहिए।

वायरस से होने वाली बीमारियाँ (Virus Diseases)

6. लीफ कर्ल: यह बीमारी सफेद मक्खी (Bemesia tabaci) के कारण फैलती है प्रभावित पौधे की पत्तियां छोटी रह जाती है तथा ऊपर की तरफ मुड़ जाती है या इककठी होने लग जाती है पौधे का विकास रुक जाता है और फलन नहीं होता है।

रोकथाम 

  • पेराथिऑन, थीमेट, अथवा रोगोर का छिड़काव कीट के नियंत्रण के लिए पौधे की शुरुआती अवस्था मे करना चाहिए।

भौतिक विकार (physiological Disorder)

ब्लासम एंड राट

भूरे रंग के पानी जैसे धब्बा फल के पुष्प से जुड़ाव वाली जगह पर बन जाता है दूसरे शब्दों मे यह कह सकते हो की फल की टिप अथवा चोंच गलने लग जाती है उस पर पुष्प लगा रहता है वो साथ ही सूखने लगता है जबकि फल हरा ही बना रहता है । धीरे धीरे धब्बा बड़ा होने लगता है धब्बा गहरे रंग का और अंदर की तरफ धंस जाता है । यह विकार निम्न कारणों के कारण होता है :

  1. विशेष रूप से नमी की कमी की स्थिति में वाष्पोत्सर्जन की दर में अचानक परिवर्तन से।
  2. निरंतर उच्च वाष्पोत्सर्जन दर और एक बड़ा पत्ती क्षेत्र (large leaf area) होने से
  3. फलों मे अधिक मात्रा मे नाइट्रोजन होने के कारण।

प्रबंधन (Management)

1) सिंचाई की आवृत्ति बढ़ाकर इस विकार को कम किया जाता है

2) सिफारिश की उर्वरक की मात्रा डाल कर । फॉस्फेट उर्वरक के स्तर में वृद्धि इस विकार की घटना को कम करती है।

3) चुना डालने से विकार मे कमी आती है  

4) फल विकास के समय 0.5% कैल्शियम क्लोराइड (CaCl2) का एक पर्ण स्प्रे।

 फल फटना 

समान्यत दो प्रकार से फल फटते है  Radial और Concentric। रैडीअल मे फल तने से लेकर फल के अंत अथवा चोंच की तरफ फटते है दूसरे शब्दों मे कहा जा सकता है की फल, व्यास मे फटते है जबकि कन्सेन्ट्रिक मे फल गोलाई मे अथवा कंधों से फटते है रैडीअल cracking समान्यत देखने को अधिक मिलती है और नुकसान भी अधिक करती है   फल फटने के कारण:

  1. लंबे सूखे समय के बाद अचानक सिंचाई अथवा बरसात से।
  2. अधिक काँट छाँट से फलों का सीधा धूप मे आ जाने से।
  3. बोरॉन की कमी से
  4. आनुवांशिक कारक जो मूल रूप से विरासत में प्राप्त हुए हो।

प्रबंधन (Management)

1) निश्चित अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

2) काँट छाँट और सहारा देना गर्मी के मौसम मे नहीं करना चाहिए।

3) फलों को पूरा पकने से पहले ही तोड़ लेना चाहिए।

4) पौध के ऊपर 0.3 -0.4 % बोरेक्स का छिड़काव रोपाई से पहले करना चाहिए। बाद मे फलन के समय और पकने के समय दोबारा छिड़काव करे।

5) रोगरोधी किस्मे बोन चाहिए जैसे Sioux, Roma, Punjab chuhara, pusa ruby, Arka saurabh, Pant T1 आदि ।

सनस्कैल्ड

फलों का सीधे सूर्य की गर्मी मे आ जाने के कारण फलों पर पानी जैसा धब्बा बन जाता है अथवा फल झुलस जाता है प्रभावित क्षेत्र हरे फल मे सफेद या ग्रे रंग का और लाल फलों मे पीले रंग का और अंदर ही तरफ धंसा हुआ बन जाता है। इस से फल कोमल हो जाता है और गलना शुरू कर देता है यह समान्यत अधिक काँट छाँट से अथवा पत्तियां कम होने की वजह से होता है ।

प्रबंधन 

1) पौधों को पत्ती रहित होने से बचाना चाहिए।

2) गर्मी के मौसम ने काँट छाँट नहीं करनी चाहिए।

 पूफीनेस्स (Puffiness)

बड़े हुए फलों की बाहरी दीवार (दो-तिहाई सामान्य आकार) सामान्य रूप से विकसित होती रहती है, लेकिन शेष आंतरिक ऊतकों (प्लेसेंटा, मेसोकार्प) का विकास मंद होता है, जिसके परिणामस्वरूप आंशिक रूप से भरा हुआ फल होता है, जो वजन में हल्का होता है और इसमें दृढ़ता की कमी होती है। प्रभावित फल का क्रॉस सेक्शन खालीपन दिखाता है इस विकार के कारण निम्न है:

i) अण्डाणु का निषेचन न होने से

ii) सामान्य निषेचन के बाद भ्रूण का गर्भपात

iii) फल के सामान्य विकास के बाद vascular and placental tissue का परिगलन

iv) उच्च तापमान और उच्च मिट्टी की नमी इस विकार के लिए जिम्मेदार कारक हैं।

v) बोरान की कमी

vi) बोरॉन देने से puffiness में कमी आती है और फल के आकार में सुधार होता है ।

प्रबंधन

1) अधिक सिंचाई नहीं करनी चाहिए।

2) नाइट्रोजन कम देना चाहिए

3) बोरॉन का छिड़काव करना चाहिए

कैट फेस (Cat face)

पुष्प के खिलने के अंत की विकृति फल के एक स्थानीय क्षेत्र में विभिन्न लकीरें, forrow  और इंडेंटेशन (indentation) को जन्म देती है। इन लकीरों और खरोचो के कारण कैटफेस नाम रखा गया है। खिलने के दौरान असामान्य स्थितियां पुष्प खिलने के अंत तक अंडाशय की कोशिकाओं की मृत्यु का कारण बनती है जो फल के अंत में एक मोटी काली गांठ  का रूप ले लेती है जो ग्रोथ नहीं करती जिस से फल का आकार समान्य नहीं बनता है ।

अफलन (Unfruitfulness)

विशेष रूप से रात के तापमान में टमाटर के फलन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। फलन के लिए दिन का तापमान उच्च (320C से ऊपर) और रात का तापमान (200C से ऊपर) अनुकूल नहीं होता है। दूसरी ओर फलन आमतौर पर 130 c  से कम तापमान पर भी  विफल होता है । उच्च और निम्न तापमान दोनों ही मुख्य रूप फलन (Fruit Setting) पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इस कारण से, पूर्वी भारत में गर्मियों की खेती के दौरान कम फलन एक समस्या है, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में जहां तापमान महत्वपूर्ण सीमा से ऊपर रहता है और उत्तर भारत में सर्दियों की खेती के दौरान जहां तापमान सर्दियों में महत्वपूर्ण स्तर से काफी नीचे रहता है।

प्रबंधन

1) अधिक तापमान को सहन करने वाली किस्मों को बोन चाहिए जैसे HS-102, Punjab Kesar, Punjab Chuhara, Hot set आदि ।

2) कम तापमान को सहन करने वाली किस्मों को बोन चाहिए जैसे Pusa Sheetal, Cold set, Ostenkinskiz आदि ।

3) PCPA 50 ppm अथवा 2,4 D, 1-2 ppm का छिड़काव वी प्रभावी रहता है

गोल्ड फ्लैक (Gold fleck)

कैलीक्स (calyx) और फ्रूट शोल्डर के चारों ओर फलों की सतह में, छोटे पीले धब्बे अक्सर दिखाई देते हैं, जिन्हें गोल्ड फ्लीक्स कहा जाता है। कैल्शियम ऑक्सालेट के जमाव के कारण ये पीले धब्बे हो जाते है। इस से, फल कम आकर्षक हो जाते हैं और उनका जीवन भी कम हो जाता है अथवा उनको कम समय तक भंडारित कर सकते है। निम्न कारणों से गोल्ड फ्लेक होता है:

i) फॉस्फेटिक उर्वरकों की उच्च आपूर्ति

ii) कैल्शियम उर्वरकों की उच्च आपूर्ति

iii) फलों में मैग्नीशियम की मात्रा में वृद्धि

iv) गर्मियों मे छाया करने से डिसऑर्डर मे कमी आती